एक चादर मैली सी

एक थे राजेन्द्र सिंह बेदी, जो अपने दौर में उर्दू में लिखा करते थे। उन्होंने उर्दू में एक छोटी पुस्तिका सी किताब लिखी थी, “एक चादर मैली सी” जिसे 1965 में साहित्य अकादमी सम्मान भी मिला था। बाद में (1986) इसी उपन्यास पर आधारित इसी नाम की एक फिल्म बनी। इसमें ऋषि कपूर थे, हेमा मालिनी और कुलभूषण खरबंदा जैसे कलाकार भी थे। जब दूरदर्शन पर अच्छी फ़िल्में दिखाने का चलन था, उस दौर में इसे टीवी पर भी दिखाते थे इसलिए चालीस या उससे ऊपर के कई लोगों ने इसे देखा होगा।

 

कहानी कुल जमा पांच लोगों के एक परिवार की है जिसमें एक बूढ़ा सा हुजुर सिंह होता है। ये अँधा और अशक्तता की स्थिति में था, कुछ इस वजह से या शायद स्वभाव ही कर्कश हो इस वजह से उसकी पत्नी जिंदा कुछ असंतुष्ट, नाराज सी स्थिति में ही दिखती है। इनके दो बेटे थे जिनमें बड़ा त्रिलोक था जो तांगा चलाता था। कुछ शराबी और कुछ बदमाश किस्म का ये त्रिलोक अपनी पत्नी रानो यानि हेमा मालिनी को अक्सर पीट-वीट दिया करता। उसकी मार-पीट को बूढ़ा बाप रोक नहीं सकता था और माँ की शह ही मिली होती है। ले-दे कर एक छोटा बेटा मंगल था जो कभी-कभार रानो को पिटने से बचा लेता।

 

छोटा मंगल यानि ऋषि कपूर एक बंजारन लड़की से प्रेम करता था। कहानी तब मोड़ लेती है जब एक दिन रेलवे स्टेशन से त्रिलोक किसी लड़की को तांगे में बिठाता है। लड़की अकेली ही थी, और कई दूसरे यात्रियों को जैसे वो सराय पर छोड़ता है, वैसे ही उस लड़की को भी त्रिलोक सराय पर छोड़ आता है। अगली सुबह पता चलता है कि लड़की का बलात्कार हो गया! लड़की के भाई का शक त्रिलोक पर था और वो त्रिलोक को बदले में मार डालता है। अब जवान विधवा रानो से घर के, आस-पड़ोस के लोग मिलकर छोटे भाई मंगल की शादी करवा डालते हैं। मंगल के अपने सपने धरे रह जाते हैं। दस-बारह साल छोटे देवर से शादी करनी है या नहीं इसपर रानो का कोई जोर तो वैसे भी नहीं चलना था।

 

कहानी के शुरुआती हिस्से का भला सा लड़का मंगल कहानी के अंत में, शुरुआत वाले खलनायक से त्रिलोक जैसा होता है। जो पिटाई रानो की पहले त्रिलोक करता था, वैसी ही पिटाई मंगल कर रहा होता है।

 

फिल्म कोई उदाहरण नहीं प्रस्तुत करती। ये नहीं दिखाती कि नायक को ऐसा होना चाहिए, या नायिका होती तो वो क्रन्तिकारी कदम उठाती। बहन के बलात्कारी की हत्या कर देने वाला भाई, आपस में मारपीट करने वाले पति पत्नी, लाचार बूढ़ा और उसकी कर्कशा पत्नी, सब आपके आस पास मौजूद होते हैं। इसलिए जब भगवद्गीता के दूसरे अध्याय में श्रीकृष्ण कहते हैं –

 

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्।।2.12

 

यानि किसी कालमें मैं नहीं था और तू नहीं था तथा ये राजालोग नहीं थे, यह बात भी नहीं है; और इसके बाद (भविष्य में) मैं, तू और राजलोग – हम सभी नहीं रहेंगे, यह बात भी नहीं है; तो उसे शुद्ध आध्यात्मिकता के रूप में लेने के बदले आप बदले रूप में भी देख सकते हैं। जो घटनाएँ हो रही हैं, उनमें से अधिकांश पहले भी हो चुकी हैं, ज्यादातर आगे भी दोहराई जायेंगी। पहले त्रिलोक कर रहा था, फिर मंगल करेगा।

 

इस प्रक्रिया को बदलना है तो उसमें भाग लेना होगा और भाग लेना है या नहीं, यही चुनने का विवेक मनुष्य को मिला है। पशु ये चुन नहीं सकते कि भूख, नींद, मैथुन, भय जैसी जो अवस्थाएं सामने आयेंगी, उनपर बदल-बदल कर प्रतिक्रिया दें। मनुष्य एकमात्र ऐसा है जो प्रतिक्रिया बदल सकता है। काफी कुछ वैसा ही जैसा मना करने, रोक-टोक या सामाजिक बहिष्कार जैसे विकल्प हैं। किसी और विकल्प को चुनने के बदले आम तौर पर ऐसी घटनाओं को अनदेखा कर दिया जाता है। पता चलने पर जो प्रतिक्रिया आमतौर पर दिखती है, उसके लिए भी भगवद्गीता के दूसरे अध्याय का एक श्लोक है –

 

आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेनमाश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः।

आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्।।2.29

 

मोटे तौर पर इसका शाब्दिक अर्थ होगा कि कोई इसे आश्चर्य की तरह देखता है;  कोई इसके बारे में आश्चर्य की तरह बताता है;  और कोई अन्य इसे आश्चर्य जैसा सुनता है;  और फिर कोई सुनकर भी नहीं जानता। “एक चादर मैली सी” की मुख्य घटनाएँ जैसे घरेलू हिंसा, बलात्कार-हत्या की खबर वगैरह ऐसी तो बिलकुल नहीं जो पहले न सुनी हों, या जिनका होना पता न हो। हाँ प्रतिक्रिया अवश्य वैसी ही होती है जैसा बताया गया है। कोई आश्चर्य की भांति इन घटनाओं को उत्तेजित होकर बताएगा, कोई उत्तेजित होकर ऐसे सुनेगा जैसे पहली ही बार सुना हो। सुनकर भी नहीं जाना का तो सोशल मीडिया के दौर में अच्छा अनुभव होगा। लिंक या स्क्रीनशॉट मांगने वाले वही तो हैं जो सुनकर या देखकर भी नहीं जान रहे!

 

इतने तक पहुँच गए हैं तो याद दिला दें कि ये सारी शाब्दिक अर्थों की बात थी। सन्दर्भ हटा दिए, आध्यात्मिक-दार्शनिक पक्ष छांट दिए हैं और फिर भी देख लीजिये कि भगवद्गीता आधुनिक सन्दर्भों में भी सटीक बैठ जाती है। बाकि जो बताया वो नर्सरी के स्तर का था और पीएचडी के लिए आपको भगवद्गीता स्वयं पढ़नी होगी, ये तो याद ही होगा!