स्याह-सफ़ेद की बाइनरी के अलावा रंग और भी हैं

Nightcrawler

फिल्म का नायक हमेशा कोई भला सा जीव हो, ऐसा जरूरी नहीं होता। पहले के नायक और खलनायक जहाँ सीधे सीधे श्वेत और श्याम रंगों में रंग दिए जाते थे, वहीँ बाद के दौर में नायक भी काले-सफ़ेद के बीच में कहीं “ग्रे शेड्स” में नजर आने लगे। अपराधियों और माफिया पर आधारित फिल्मों में तो जिसकी कहानी दिखाई जा रही होती है, उसमें मुख्य अदाकार को नायक कह पाना नामुमकिन होता है। इनसे प्रेरणा लेकर कई बार लोग अपराध करते हुए भी पकड़े जाते हैं। हर बार जो खलनायकों सा मुख्य किरदार है, वो कोई अपराधी ही हो ऐसा भी जरूरी नहीं होता। ऐसी एक फिल्म है “नाईटक्रॉलर” जो कि 2014 में आई थी।

 

इस फिल्म का मुख्य किरदार लुइस “लोउ” ब्लूम नाम का एक किरदार है। ये समाचार बेचने का धंधा करता है और नैतिकता को अपने काम से दूर, कहीं ताक पर रखता है। ये कितनी मेहनत से कोई काम सीख रहा होता है, या कैसे पैसे या काम के लिए मोल-भाव (नेगोशिएशन) करता है वो देखने और सीखने लायक जरूर हो सकता है। जिस तरह ये समाचार के लिए वीडियो लाता है, वो समाचार जगत को दूर से देखने वालों के लिए आश्चर्य, अविश्वास और खेद का विषय ही होगा। इस लुइस की कहानी एक चोर के तौर पर शुरू होती है जिसे रास्ते से गुजरते कहीं एक दुर्घटना को शूट करते वीडियो पत्रकार नजर आ जाते हैं। उनसे इसे पहली बार पता चलता है कि ऐसे वीडियो शूट करके उसे समाचार चैनलों को बेचा जा सकता है।

 

अगले ही दिन लुइस कहीं से एक साइकिल चुरा लेता है और उसे बेचकर एक वीडियो रिकॉर्डर कैमरा वगैरह खरीद लाता है। रेडियो को पुलिस बैंड पर सेट करके वो अपराधों की सूचना सुनाता और जल्दी से वहां पहुंचकर वीडियो बनाने की कोशिश करता। शुरू में उसके पास कोई प्रेस कार्ड या परिचय इत्यादि नहीं था तो पुलिस उसे मौका ए वारदात से भगा भी देती थी, लेकिन वो काम छोड़ता नहीं। धीरे-धीरे वो आगे बढ़ने लगता है। आखिर एक दिन ऐसा करते-करते वो वायरलेस सन्देश सुनकर, अपराध की एक जगह पुलिस से पहले ही पहुँच जाता है। नैतिक तौर पर हत्याओं की इस घटना को शूट करना अनैतिक होता, लेकिन वो तो नैतिकता छोड़कर काम करता था! वीडियो बनता है, बिकता है, और लुइस की कंपनी अपने पैरों पर खड़ी हो जाती है।

 

इस अपराध में उसने अपराधियों को भी देख लिया होता है। उनसे एक और खबर बनाने के चक्कर में वो अपराधियों के बारे में पुलिस को नहीं बताता और बाद में ढूंढकर अपराधियों का पीछा करता है और जिस जगह ज्यादा टीआरपी वाली खबर बने, ऐसे एक रेस्तरां के बाहर से पुलिस को सूचित करता है। पुलिस आती है, एनकाउंटर होता है, दोनों तरफ से गोलियां चलती हैं और लुइस को अपराधी का पीछा करके गोलीबारी और अंत में अपराधी के मारे जाने का वीडियो बनाने का मौका भी मिल जाता है। इस पूरे क्रम में लुइस का साथी भी मारा जाता है, लेकिन उससे भी लुइस को कोई फर्क नहीं पड़ता। अंतिम दृश्य में पता चलता है कि उसकी समाचार बेचने की कंपनी अब बड़ी हो रही है। वो अपनी कंपनी के लिए नयी गाड़ियाँ ले आया था और नए लोगों को भर्ती कर रहा होता है।

 

एक टीवी न्यूज़ जर्नलिस्ट कैसे एक अपराधी जैसा बर्ताव कर रहा होता है, वो देखना हो तो आप ये फिल्म देख सकते हैं। जैसे ही बिलकुल उल्टे तरीके से अधर्म को ही धर्म मानता ये लुइस और उसके काले कारनामे दिखने लगते हैं वैसे ही आपको भगवद्गीता के अट्ठारहवें अध्याय का बत्तीसवां श्लोक याद आ जायेगा –

 

अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसाऽऽवृता।

सर्वार्थान्विपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी।।18.32

 

मोटे तौर पर इसका अर्थ है कि जो बुद्धि अधर्मको धर्म और सभी चीजों को उलटा मान लेती है, वह तामसी है। इसे थोड़ा और विस्तार में देखना हो तो इससे सम्बंधित 14वें अध्याय का 22वां श्लोक देखिये –

 

श्री भगवानुवाच

प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव।

न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति।।14.22

 

यहाँ कहा जा रहा है कि प्रकाश, प्रवृत्ति और मोह से जुड़ी वस्तु मिल रही हो तो उसमें डूबता नहीं, और अगर ये ना मिलें तो दुखी भी नहीं होता रहता, ऐसा व्यक्ति ज्ञानी है। फिल्म के लुइस को जैसे ही अपनी पसंद की चीज़ें नहीं मिलती, वो उन्हें पाने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाता है। सत्रहवें अध्याय के शुरूआती हिस्से में तामसी गुणों की चर्चा है, वहां भी पांचवे श्लोक में देखेंगे तो फिल्म के नायक का करीब हर गुण दिख जायेगा। वहां दंभ, अहंकार, भोगों में आसक्ति और हठ, सभी की चर्चा आती है।

 

कभी-कभी कुछ मासूम लोग सोचते हैं कि ऐसे कार्यों का भला किसी को लाभ कैसे हो सकता है? भगवान उसे तुरंत ही दण्डित क्यों नहीं करते? जब तामसी प्रवृति और तमोगुण पर भगवद्गीता की चर्चा देखेंगे तो ये भी स्पष्ट होने लगता है। भगवद्गीता के हिसाब से यज्ञ, तप, दान, सभी सतोगुणी, तमोगुणी या रजोगुणी हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर तमोगुणी लोग प्रेतों-पिशाचों की पूजा कर सकते हैं। प्रेत कभी-कभी मृत शरीर को भी कहा जाता है, उसे शीशे के डब्बे में या किसी दूसरी व्यवस्था से कहीं बंद करके उसकी उपासना करने वालों को आपने देखा नहीं भी होगा तो उनके बारे में सुना जरूर होगा। यहाँ ध्यान देने लायक ये भी है कि ये कोई भगवद्गीता के शुरूआती हिस्से नहीं है। इन अध्यायों से काफी पहले ही अर्जुन भगवान का विश्वरूप देख चुका है। इसके बाद भी उसे प्रश्न करने की छूट है और भगवान भी खीजकर जवाब देना बंद नहीं कर रहे।

 

बाकी क्या-क्या नहीं करना चाहिए, उसके बारे में समझना हो तो “नाईटक्रॉलर” जैसी फ़िल्में देख लीजिये। तमोगुण सम्बन्धी भगवद्गीता के श्लोक खुद ही पढ़ लीजियेगा, क्योंकि जो हमने बताया है वो नर्सरी के स्तर का है और पीएचडी के लिए खुद पढ़ना होगा, ये तो याद ही होगा?