किताब के कवर पर कमल के फूल और पत्तों पर ठहरी बूंदों की तस्वीर दिखाने के क्रम में हमने छल से आपको भगवद्गीता के पांचवे अध्याय का दसवां श्लोक पढ़ा दिया है –
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा।।5.10
अर्थात जो सम्पूर्ण कर्मों को भगवान् में अर्पण करके और आसक्ति का त्याग करके कर्म करता है, वह जल से कमल के पत्ते की तरह पाप से लिप्त नहीं होता।
अगर सच बताएं तो हमने पूरी पुस्तक में यही किया है, आशा है इतने से छल पर आपत्ति नहीं होगी! “मगर इन्हीं अध्यात्मिक-धार्मिक विचारों पर आधारित फ़िल्में तो संसार भर में देखी जा रही हैं? नयी पीढ़ी की इसमें रूचि नहीं, आपको ऐसा क्यों लगता है?” इस तर्क से लोग सहमत होते, लेकिन भारतीय अध्यात्मिक और धार्मिक मान्यताओं को सीधी सरल भाषा में भी लोगों तक पहुँचाया जा सकता है, इसके लिए कोई विशेष प्रयास फिर भी नहीं किये जाते थे। अंततः 2016 में कभी रोजमर्रा की घटनाओं, फिल्मों के दृश्यों और जानी पहचानी सी कहानियों के साथ ही “गीतायन” की कहानियां लम्बी सोशल मीडिया पोस्ट के रूप में सामने आने लगीं। लम्बे समय तक इन्हें एक जगह इकठ्ठा करने की बात चलती रही और अंततः पिछले चार वर्षों में भगवद्गीता को आसान तरीके से रोजमर्रा की घटनाओं, फिल्मों के दृश्यों में दिखा देने पर लिखे गए लेखों की “गीतायन” अब एक पुस्तक के रूप में है। सिद्धांतों को यथासंभव सरल स्तर पर ही रखा गया है। इससे आगे कहाँ तक पढ़ना है, ये पाठकों पर निर्भर है।
गीतायन के बारे में पाठकों की राय:
गीतायन: भगवद्गीता पर एक अलग दृष्टिकोण
कई फिल्मों के दृश्य हमें ये बता जाते हैं कि सही क्या है और गलत क्या है। ये तब और स्पष्ट हो जाता है जब वहीँ पर कोई भगवद्गीता का वो श्लोक दोहरा दे, जिससे वो घटना सम्बद्ध है। मेरा प्रयास था ऐसी ही फिल्मों की कहानियों और दृश्यों को आपके सामने दोबारा लाना, जो आपने देखी हैं, आपको याद भी हैं, लेकिन वहां जो शिक्षा छुपी है, उसपर आपका ध्यान नहीं गया।
ये ई-बुक की शक्ल में काफी पहले आई थी, इसलिए इसमें पेपरबैक की तुलना में कम कहानियां हैं। जहाँ पेपरबैक करीब 180 पन्ने का होता है, वहीँ ई-बुक करीब सौ पन्नों में सिमट जाती है। इसके बाद भी ई-बुक के अपने फायदे हैं। एक तो हम कई बार इसे मुफ्त वितरित कर पाते हैं। दूसरा ये आसानी से विदेशों तक भी पहुँच सकता है, जहाँ पेपरबैक को उचित मूल्य पर पहुँचा पाना कई बार संभव नहीं होता।