पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता।।1.3।।
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः।।1.4।।
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः।।1.5।।
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः।।1.6।।
स्वामी चिन्मयानंद की व्याख्या:-
वास्तव में दुर्योधन की यह मूर्खता है कि वह द्रोणाचार्य को पाण्डवों की सैन्य रचना के विषय में विस्तार से बताये। आगे हम देखेंगे कि वह आवश्यकता से अधिक बातें करता है जो युद्ध के परिणाम के विषय में उसके संदेह का स्पष्ट लक्षण है।
तीन श्लोकों में पाण्डवसैन्य के प्रमुख एवं प्रसिद्ध योद्धाओं युयुधान (सात्यकि), राजा विराट, महारथी द्रुपद, धृष्टकेतु, चेकितान, पराक्रमी काशिराज, पुरुजित्, कुन्तिभोज, पराक्रमी युधामन्यु, पराक्रमी उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु और द्रौपदी के पाँचों पुत्र के नाम है। पाण्डवों की सेना का निरीक्षण करते समय दुर्योधन उनमें अनेक महारथियों को पहचानता है। प्राचीन हिन्दू सेनाओं में 11000 धनुर्धारी सैनिकों के समूह के नायक को महारथी कहा जाता था।
अर्जुन और भीम अपने समय के धनुर्विद्या और शक्ति के लिये प्रसिद्ध योद्धा थे। दुर्योधन कहता है कि सभी महारथी अर्जुन और भीम के समान हैं जिसका तात्पर्य यह है कि यद्यपि पाण्डवों की सेना संख्या में कम थी परन्तु सार्मथ्य में वह कौरवों की सुसज्जित और विशाल सेना से अधिक थी।