“द एडमिरल” – जीवन-मृत्यु और संघर्ष

किम हान मिन की बनाई “द एडमिरल” दक्षिण कोरिया में इतनी प्रसिद्ध हुई थी कि उसका मुकाबला सीधा “अवतार” फिल्म से था! जहाँ “अवतार” फिल्म को 13 मिलियन लोगों ने देखा था, वहीँ इसे वहाँ पर 17.6 मिलियन लोगों ने देखा। ये कोरिया की म्योंगन्यंग की लड़ाई और उस वक्त की नौसेना के प्रमुख यी शुन शिन की कहानी पर आधारित है। जैसा कि अंदाजा लगाया ही जा सकता है, ये एक युद्ध पर आधारित फिल्म है तो कई स्पेशल इफ़ेक्ट वाले दृश्य भी फिल्म में हैं। ये कहानी ऐसे दौर की है जब जापानी नौसेना काफी मजबूत थी और आतंरिक कारणों से कोरिया की नौसेना टूटी फूटी सी हालत में थी।

 

फिल्म की शुरुआत में जापानी हमलावर तोडो ताकातोरा इस बात के लिए निश्चिन्त था कि वो आसानी से हमला करके राजा सिओंजो को पकड़ सकता है। उधर कोरिया के लोगों ने जब हमले की खबर सुनी थी तो यी शुन शिन को फिर से नौसेना का प्रमुख बना दिया था। इससे थोड़े ही दिन पहले जापानियों ने कोरिया को बुरी तरह हराया था। कोरिया के दो सौ के लगभग जहाज नष्ट कर डाले गए थे और उनके पास कुल जमा 12 ही जहाज युद्ध में जाने लायक थे। जापान से जिस कुरुशिमा को हमला करने के लिए भेजा जाता है उसे समुद्री लुटेरा माना जाता है। कुरुशिमा के साथ हारू नाम का एक निशानेबाज भी होता है जिसके भाई मिचियुकी को कभी किसी लड़ाई में यी शुन शिन ने मार गिराया था।

 

यी शुन शिन को कमान तो मिल गयी थी लेकिन हार की वजह से उसके नौसैनिक डरे हुए थे। उनमें से कई लड़ने से पहले ही हार माने बैठे थे। तबतक कोरिया के साथ पिछली लड़ाई में गद्दारी कर चुका एक सिपहसलार कोरिया के एकलौते टर्टल शिप को जला डालता है और यी शुन शिन की हत्या का प्रयास भी करता है। इस घटना से जापानी हमलावरों का हौसला बढ़ जाता है और यी के सैनिक और हतोत्साहित हो जाते हैं। यी शुन शिन तम्बुओं और शिविरों को जलवा देता है और कहता है कि अगर मरना ही है तो हम लड़ते हुए मरेंगे! सिपाहियों में थोड़ा हौसला बढ़ता है। जापानी जिस रास्ते से हमला करने अपने जहाजों के साथ आते, यी शुन शिन वहीँ जाता है और वहीँ उसे जीत की एक योजना भी सूझती है।

 

सुबह के ज्वारभाटे के साथ जापानी जहाज तेजी से उस संकरी सी जगह में दाखिल होते हैं। लहर से यी शुन शिन का जहाज पीछे की तरफ खिंच रहा था। वो लंगर डालके मुकाबला करता है और पानी के बहाव को न समझते हुए जापानी जहाज ऐसी जगह आ फंसते हैं जहाँ पानी का बहाव और एक भंवर उनके खिलाफ काम करता। एक तरफ से यी शुन शिन की गोलाबारी और दूसरी तरफ भंवर और पानी का मुकाबला करता जापानी हमलावर कुरुशिमा जल्दी ही हारने लगता है। कुरुशिमा को पता था कि बाकी के जापानी उसकी मदद नहीं करने वाले इसलिए वो अकेला ही यी शुन शिन के जहाज पर चढ़कर उसपर हमला करने की कोशिश करता है और मारा जाता है।

 

बाकी के तीन सौ के लगभग जापानी हमलावर जहाज कुरुशिमा और उसके 30 के लगभग जहाजों का आसानी से खात्मा होते देखकर भाग खड़े होते हैं। ये फिल्म असल में एक सत्य घटना पर आधारित है। म्योंगन्यंग की लड़ाई में सचमुच यी शुन शिन ने दर्जन भर जहाजों से जापानियों के तीन सौ से अधिक जहाजों की सेना को हरा डाला था। फिल्म के अंतिम दृश्य में वो कुरुशिमा का सर अपने जहाज के ऊपर टांग देते हैं और पहली बार जापानियों का सामना कोरिया के टर्टल शिप से होना दिखाते हैं। ये फिल्म कोरियाई भाषा में है और अंग्रेजी सब-टाइटल के साथ आती है, तो कम ही लोगों ने देखी होगी और जाहिर है इसकी कहानी के जरिये हम फिर से धोखे से भगवद्गीता के कुछ श्लोक बता चुके हैं।

 

यी शुन शिन के सिपाही लड़ाई शुरू होने से पहले ही हार मान चुके थे। वो यी शुन शिन के पास भी इसी निवेदन के साथ पहुँचते हैं कि ऐसा मूर्खतापूर्ण युद्ध जिसमें सभी मरने ही वाले हों, वो शुरू ही न किया जाए! इसके जवाब में शिविरों को जलाने के बाद यी शुन शिन जो कहते हैं, वो करीब करीब वही है जो श्री कृष्ण भगवद्गीता में दूसरे अध्याय के सैंतीसवें श्लोक में कहते हैं –

 

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।

तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः।।2.37

 

इस श्लोक के पहले भी कहा गया है कि युद्ध से भागने पर तो बड़ी बदनामी होगी, और इस श्लोक में कहा गया है कि मारे जाने पर स्वर्ग मिलेगा और जीतने पर राज्य का सुख प्राप्त होगा। इसलिए युद्ध का निश्चय करके खड़े हो जाओ अर्जुन! कीर्ति का जीवनकाल से कोई लेना देना नहीं होता! वो मृत्यु के उपरांत भी रहती है। इसे आप अंग्रेजी के “लिंच” शब्द में देखिये। कैप्टेन विलियम लिंच के नाम से ये शब्द अठारहवीं सदी में बना था और आज भी दो सौ वर्ष बाद सुनाई देता है।

 

ये आपको “बॉयकाट” शब्द में भी दिख जायेगा। चार्ल्स कन्निंग्हम बॉयकाट को जैसे समाज से बाहर किया गया था, वही शब्द आज सौ से ऊपर वर्ष बीतने पर भी प्रयोग किया जाता है। इनकी मृत्यु को सदी बीत गयी है लेकिन शब्दों में इनकी बदनामी अभी भी जीवित है। इसकी तुलना आप “कार्डिगन” से भी कर सकते हैं। ये एक ख़ास प्रकार का सामने से खुला स्वेटर होता है, जिसका नाम सातवें “अर्ल ऑफ़ कार्डिगन” के नाम पर है। वो क्रीमिया के युद्ध में 1868 में मारे गए थे और उनकी टुकड़ी की बहादुरी पर “चार्ज ऑफ़ द लाइट ब्रिगेड” जैसी कविताएँ लिखी गयी हैं। तो माना जा सकता है कि दूसरे अध्याय के छत्तीसवें और सैंतीसवें श्लोक में भगवान कोई अतिशयोक्ति नहीं कर रहे।

 

फिल्म में एक दृश्य में कुरुशिमा और उसके साथी बारूद से भरा एक जहाज यी शुन शिन के जहाज की ओर रवाना करते हैं। जहाज को कुरुशिमा द्वारा कैद किये गए लोग चला रहे होते हैं, इसलिए उनके मारे जाने की हिंसक और क्रूर कुरुशिमा को कोई परवाह भी नहीं होती। जैसे-तैसे इन कैदियों में से एक छूटकर जहाज की छत पर आ जाता है। वो किनारे अपनी पत्नी से इशारा करने को कहता है। उसके इशारा करने पर जब कोई जहाज पर तोप चलाता तो पूरा जहाज फटता और बाकी लोगों के अलावा उसका पति भी मारा जाता। अब सोचिये कि जब वो स्त्री या गाँव के दूसरे लोग इशारा करके तोप उस बारूद भरे जहाज पर दागने कह रहे थे, तो क्या वो उस नाव पर मौजूद व्यक्ति की हत्या करने कह रहे थे?

 

संभवतः इसका जवाब होगा नहीं। एक तो इसलिए क्योंकि उस एक या उसके जैसे कुछ और कैदियों के मारे जाने से यी शुन शिन और उसके साथी बच जाते। उनके जीवित बचने पर हमलावरों से देश के कई लोगों की जान बचती। दूसरा इसलिए क्योंकि वो इतना घायल था कि उसका बचना संभव नहीं था। ऐसे में दूसरे ही अध्याय का एक और श्लोक याद आता है –

 

श्री भगवानुवाच

अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।

गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः।।2.11

 

यहाँ श्री कृष्ण उलाहना देते हुए अर्जुन से कहते हैं कि बातें तो पंडिताई की कर रहे हो, लेकिन जो मृत हैं उनके लिए, और जो मरे ही नहीं, उनके लिए भी पंडित शोक नहीं करते। जो मृत हैं उनके लिए शोक करने का कोई लाभ नहीं और जो मरे ही नहीं, उनके लिए शोक करने की कोई जरूरत नहीं होती। इसलिए वो स्त्री तोप जहाज पर चलाने के लिए इशारा करने में अधिक हिचकिचाती नहीं। शायद वो मान लेती है –

 

वासांसि जीर्णानि यथा विहायनवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।

तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22

 

जैसे मनुष्य जीर्ण वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को धारण करता है, वैसे ही देह को धारण करने वाली जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर नए शरीरों को धारण करती है।

 

फिल्म के अंत के दृश्य में यी शुन शिन से उसका बेटा पूछ रहा होता है कि क्या संभावना थी कि वो युद्ध हार जाते? यी शुन शिन बताते हैं कि ये देवी कृपा ही थी कि वो युद्ध हारे नहीं या युद्ध करते हुए मारे नहीं गए। बेटा फिर पूछता है कि किसे दैवी कृपा कह रहे हैं? भंवर के बदलने, ज्वारभाटा या लहरों की दिशा को, या मछुवारों-गाँव वालों की मदद को? यी शुन शिन का उत्तर आपको नौवें अध्याय के बाईसवें श्लोक की याद दिला देगा –

 

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।

तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।9.22

 

इसमें कहा गया है कि जो अन्य विषयों को छोड़कर मेरी शरण में आते हैं, उनके लिए अप्राप्त की प्राप्ति और प्राप्त की रक्षा का भार मैं स्वयं वहन करता हूँ।

 

बाकी युद्ध पर आधारित फिल्म के बहाने से जो ये भगवद्गीता के श्लोकों के बारे में बताया है, इनके सन्दर्भ से और भी श्लोक देखे जा सकते हैं। जो हमने बताया वो नर्सरी स्तर का था और पीएचडी के लिए आपको भगवद्गीता स्वयं ही पढ़नी होगी, ये तो याद ही होगा!