अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः।
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः।।1.9।।
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्।।1.10।।
एक अत्याचारी तानाशाह का गर्व और दम्भ देखो कितना है कि वह कहता है कि इतनी विशाल सेना और उसके प्रमुख वीर मेरे लिये प्राणोत्सर्ग करने के लिये तैयार हैं। महाभारत के सजग अध्येता जानते हैं कि यदि भीष्म पितामह कौरवों की ओर से युद्ध न करते तो कितने लोग वास्तव में दुर्योधन के लिये प्राणदान के लिये तैयार होते। भीष्म के द्वारा हमारी रक्षित सेना अपर्याप्त है किन्तु भीम द्वारा रक्षित उनकी सेना पर्याप्त है।
हिन्दुओं की प्राचीन युद्ध पद्धति में किसी सेना के सेनापति के साथसाथ कोई योद्धा सेना का रक्षक भी होता था जिसमें शौर्य साहस और बुद्धिमत्ता जैसे गुण आवश्यक होते थे। कौरव और पाण्डव पक्षों में क्रमश भीष्म और भीम रक्षक थे।