मैत्री और प्रेम पर आधारित “फर्स्ट काऊ”

कम सुनी हुई फिल्मों की बात करें तो 2019 में आई अमेरिकी फिल्म “फर्स्ट काऊ” का नाम भारत में करीब-करीब अनसुनी फिल्मों में आएगा। इस फिल्म को केली रेईचर्ड ने निर्देशित किया था और ये जोनाथन रेमंड द्वारा लिखित उपन्यास “द हाफ लाइफ” पर आधारित थी। सत्तरवें बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में ये गोल्डन बेयर अवार्ड के लिए मुकाबला करने वाली प्रमुख फिल्मों में से एक थी और इसे आलोचकों ने भी जमकर सराहा था। इसके बाद भी फिल्म को कई पुरस्कार मिले थे। फिल्म की कहानी जब शुरू होती है तो एक स्त्री अपने कुत्ते को घुमाने निकली होती है और संयोगवश उसे नदी किनारे दो कंकाल मिल जाते हैं! ये दोनों कंकाल एक ही साथ, बहुत कम गहरे, एक ही कब्र में, पास पास दफन थे।

 

यहाँ से कहानी फ़्लैश बैक में जाती है और 1820 में दिखाते हैं कि कुछ शिकारियों के साथ ओटिस (जिसे सब कुकी बुलाते हैं), जंगल में होता है। उसके साथी शिकारी उसे कम खाना लाने की वजह से डांटते-बेइज्जत करते भी दीखते हैं। शिकार के सफ़र के दौरान ही कुकी की मुलाकात एक चीनी व्यक्ति से हो जाती है जो किसी रुसी की हत्या करके भागा हुआ होता है। वो चीनी लू को रातभर अपने तम्बू में छुपा लेता है और अगली सुबह वो नदी पार कर भाग जाता है। काफी दिनों बाद जब कुकी की दोबारा लू से मुलाकात होती है तो लू एक झोंपड़े में रह रहा था और कभी दुनिया घूमने और अपने खेत होने के सपने देखता था। कुकी उसे अपने सपने – सन फ्रांसिस्को में होटल खोलने की बताता है। दोनों में ठीक-ठाक दोस्ती हो जाती है।

 

कुकी को कुछ दिन बाद इलाके में पहली दूध देने वाली गाय के आने का पता चलता है। वो इलाके के एक अंग्रेज चीफ फैक्टर ने खरीदी थी। कुकी लू को बतात है कि वो जब एक बेकर का सहयोगी था तो उसने दूध डालके कई चीज़ें बनाना सीखा था। अगर उसे दूध मिल जाए तो वो कई चीज़ें बनाकर, उन्हें बेचकर, अच्छा कम पायेगा। लू अब कुकी के साथ मिलकर गाय का दूध चुराने की योजना बनता है। वो लोग मिलकर कुछ दूध चुरा लाते हैं और कुकी उससे बिस्कुट बनाता है। वो जब अच्छी कीमत पर बिकने लगे तो लोग उनसे बनाने की विधि भी पूछते थे लेकिन लू कहता कि ये एक गुप्त चीनी नुस्खा है! वो अक्सर दूध चुराने लगे और उनके बिस्कुट का कारोबार भी बढ़िया चलने लगा। एक दिन चीफ फैक्टर ने ही कुछ बिस्कुट बनाने कहा ताकि किसी रेड इंडियन सरदार का स्वागत किया जा सके।

 

चीफ फैक्टर को भी बिस्कुट पसंद आते हैं और उसकी दावत में बातें सुनकर कुकी घबराने भी लगता है। इतना ही नहीं, रोज दूध चुराने की वजह से गाय उसे पहचानती थी। इस सबको देखकर कुकी कहता है कि उन्हें अब ये दूध की चोरी बंद कर देनी चाहिए क्योंकि उस दौर में चोरी की सजा अक्सर मौत होती थी। लू कहता है कि उन्हें बस थोड़े से पैसे और जोड़ने हैं। एक दिन और चोरी की जाए तो काम बन जायेगा! दोनों अगली रात फिर से चोरी करने जाते हैं मगर बदकिस्मती से उस दिन चीफ फैक्टर का एक आदमी बाहर था। लू उसे देखकर इशारा करने की कोशिश करता है, लेकिन जिस पेड़ पर वो चढ़ा था, उसकी डाल टूटने से वो गिर जाता है। उसे देखने जाने में कुकी से दूध गिर जाता है और आवाज सुनकर लोग इकठ्ठा होने लगते हैं। उस वक्त तो कुकी और लू भाग गए मगर चीफ फैक्टर अपने आदमियों को इकठ्ठा करके उन्हें मारने के लिए उनका पीछा करता है।

 

भागने में लू तो नदी तैरकर पार कर जाता है मगर कुकी को एक झाड़ी के पीछे छुपना पड़ता है। उस वक्त भी चीफ फैक्टर के आदमी उन्हें पकड़ नहीं पाते लेकिन कुकी को बाद में गिरने से सर पर चोट लग जाती है और वो बेहोश हो जाता है। उसका कुछ स्थानीय लोग इलाज कर देते हैं। पूरी तरह ठीक होने से पहले ही वहाँ से निकलकर कुकी फिर से लू को ढूँढने चल पड़ता है। लू भी एक नौकावाले की मदद से वापस आता है। जहाँ उन लोगों ने पैसे छुपाये थे, वहाँ से पैसे लेकर वो निकल ही रहा था कि उसे फिर से छुपना पड़ता है। उनका झोपड़ा चीफ फैक्टर के लोग जला डालते हैं। वापस अपने जले आशियाने तक पहुँचने पर कुकी की मुलाकात लू से हो जाती है। लू उसे एक नजदीकी जगह से नाव पर सवार होकर दक्षिण की ओर भाग जाना चाहता था। दोनों निकलते हैं तो चीफ फैक्टर का एक आदमी बन्दूक लेकर उनका पीछा कर रहा होता है।

 

घायल कुकी ज्यादा चल नहीं पाता। वो थककर एक जगह लेट जाता है। उसकी हालत बिगड़ रही थी। लू उसके बगल में ये कहते हुए लेट जाता है कि इस जगह वो कुछ देर सुरक्षित हैं। दोनों को पता नहीं होता कि कोई बन्दूक लिए उनका पीछा कर रहा है। फिल्म जब ख़त्म होती है तो ये अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं होता कि शुरूआती दृश्य में जो कब्र और उसमें अगल बगल पड़े कंकाल दिखे थे वो किसके थे। संभव है कि इतनी कहानी के बाद आपके मन भी फिल्म के कूकी और लू के लिए करुणा जाग आई हो! तो अब चलते हैं भगवद्गीता पर, जिसके एक-दो श्लोकों हमने फिर से फिल्म की कहानी के बहाने आपको पढ़ा डाले हैं। यहाँ जिस श्लोक पर हम आपका ध्यान दिलाने जा रहे हैं वो दूसरे अध्याय का ग्यारहवाँ श्लोक है –

 

श्री भगवानुवाच

अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।

गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः।।2.11

 

इस श्लोक में मोटे तौर पर कहा गया है कि जिनके प्राण नहीं गए उनके लिए पंडित शोक नहीं करते (क्योंकि ऐसी कोई जरूरत ही नहीं), और जिनके चले गए हैं, (उनके लिए शोक करने का कोई फायदा नहीं) उनके लिए भी पंडित शोक नहीं करते। शब्दार्थ के साथ भावार्थ भी होता है और किस भाव में कोई बात कही गयी है उसे भी देखा जाता है। जब “प्रज्ञावादांश्च भाषसे” वाला पद देखेंगे तो भाव कुछ ऐसा निकलता है कि एक तरफ तो तुम पण्डितों वाली भाषा सुना रहे हो और दूसरी तरफ शोक भी कर रहे हो! यानी केवल बातें ही बनाते हो, पण्डित हो नहीं। इसे छोटे स्तर पर देखेंगे तो कुकी और लू तो केवल फिल्म के पात्र थे, सचमुच थे ही नहीं तो मरते कैसे? इसलिए आपका अफ़सोस व्यर्थ है। बड़े स्तर पर आयें तो दोनों के दोनों तो अपराधी भी थे और उन्हें अच्छी तरह पता था कि उनके किये का क्या नतीजा होने वाला है। उन्हें जो मिला वो तो सीधा कर्मफल था, इसलिए भी उनके लिए अफ़सोस नहीं किया जाना चाहिए।

 

फिल्म के दूसरे प्रमुख किरदार, अंग्रेज चीफ फैक्टर को देखकर आप दूसरे अध्याय का बासठवाँ और तिरसठवाँ श्लोक देखिये –

 

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।

सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।।2.62

क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।

स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63

 

इनका मोटे तौर पर मतलब होता है कि किसी विषय के बारे में सोचते रहने से उसके प्रति आसक्ति होती है, आसक्ति से उसे पाने की इच्छा जागेगी, कामना के पूरे न होने से क्रोध, और फिर क्रोध में मूर्खता भी होगी ही। अर्थ को थोड़ा विस्तार दिया जाए तो इन श्लोकों में “युग्म” नाम का अन्वय दिखाई देता है। अन्वय का अर्थ है, शब्दों का तर्कपूर्ण क्रम। अन्वय का शाब्दिक अर्थ सकारात्मक भी होता है। काव्य में शब्दों का ही नहीं, श्लोकों का भी अन्वय होता है। इसके चार भेद माने जाते हैं — युग्म, विशेषक, कलाप और कुलक। कितने श्लोकों को एक साथ पढ़ने या कहने पर एक तार्किक अर्थ सामने आता है, ये भेद उसके आधार पर किये गए हैं। इसके लिए संस्कृत में कहा जाता है –

 

द्वाभ्यां युग्ममिति प्रोक्तं त्रिभिः श्लोकैर्विशेषकम्।

चतुर्भिः कलापं ज्ञेयं तादूर्ध्वं कुलकं स्मृतम्।।

 

जहाँ दो श्लोकों को एक साथ पढने पर कोई तर्कपूर्ण अर्थ आये उसे ‘युग्म’ कहते हैं। जहाँ तीन श्लोकों का एक साथ अन्वय किया जाता है, उसे ‘विशेषक’ कहा जाता है। ‘कलाप’ में चार श्लोकों का एक साथ अन्वय किया जाता है। जहाँ चार से अधिक श्लोकों का एक साथ अन्वय किया जाए उसे ‘कुलक’ कहा जाता है। भगवद्गीता में इन चारों का प्रयोग होता दिख जायेगा। ये स्थिति अंग्रेज चीफ फैक्टर की गाय को लेकर है। उस गाय के साथ उसने एक सांढ और बछड़ा भी मंगवाया था लेकिन वो मर गए थे और चीफ फैक्टर के पास केवल गाय पहुँचती है। गाय को अच्छा खाना देने के बाद भी वो कम दूध दे रही है इसपर चीफ फैक्टर का ध्यान था। अपने रेड इंडियन मेहमान को वो गाय के दूध से बना क्रीम परोसते वक्त भी इकलौती गाय के मालिक होने को कैसे एक गर्व की बात के रूप में देखता था ये पता चलता है। लगातार उसके विषय में सोचते हुए वो दूध और अन्य उत्पादों का इकलौता मालिक होना चाहता है। इसीलिए जब उसे पता चलता है कि कोई दूध चोरी करके उससे बिस्कुट बनाकर बेच रहा है तो उसे बहुत तेज गुस्सा आता है।

 

घटनाओं को बाहर से देखते हुए हम लोगों को लगेगा कि चोरी के लिए मार-पीटकर इलाके से भगा देना भी काफी सजा होती। इसी बात के लिए कुकी और लू को मरवा डालने की सजा जरूरत से ज्यादा होती लेकिन अंग्रेज चीफ फैक्टर वो भी मूर्खता ही करता है। काव्य में शब्द अलंकारों के अलावा अर्थालंकार भी होते हैं। इन अर्थ के बदलने से उत्पन्न अलंकारों का ही एक भेद है कारणमाला अलंकार। इन श्लोकों में कारणमाला अलंकार का प्रयोग हुआ है। जहाँ एक कारण से उत्पन्न कार्य, किसी अन्य कार्य का कारण हो और इस प्रकार वस्तुओं का वर्णन एक श्रृंखला में किया जाय, वहाँ कारणमाला अलंकार होता है। यहाँ विषय के बारे में सोचने से आसक्ति, आसक्ति से कामना, कामना से क्रोध, क्रोध से मति का जाना, आदि एक के बाद जो एक कारण दिखते हैं वो कारणमाला अलंकार है। यहाँ ये भी ध्यान देने लायक है कि काम, लोभ, ममता और क्रोध चारों से ये मूर्खता का भाव जाग सकता है।

 

अब सवाल ये है कि नाम सिर्फ क्रोध का ही क्यों लिया जा रहा है? इस विषय पर स्वामी रामसुखदास जी की टीका देखें तो वो कहते हैं कि काम, लोभ, और ममता में मनुष्य अपना फायदा देख रहा होता है जबकि क्रोध में विशेष ये है कि क्रोध में व्यक्ति अपना लाभ नहीं किसी और का नुकसान कर देना चाहता है। इसलिए विशेष रूप से यहाँ क्रोध पर बल दिया गया है। इनके अलावा अगर देखना हो तो आठवें अध्याय का छठा श्लोक देखिये –

 

यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।

तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः।।8.6

 

यहाँ कहा जा रहा है कि जीव अन्तकाल में जिस किसी भी भाव में होगा, उस भाव के चिन्तन के फलस्वरूप उसी भाव को ही प्राप्त होता है। अंत समय में एक दूसरे के बारे में सोचते हुए कुकी और लू का क्या हुआ? आप उनके चोर होने, हत्या के अपराधी होने, गलत तरीके से पैसे कमाने के बारे में नहीं सोच रहे हैं। पूरी फिल्म बीतने पर आप उनकी मैत्री, उनके आपस के प्रेम (जिसे संभवतः कुछ विदेशी विचारधारा वाले लोग समलैंगिक भी कहना चाहेंगे), के बारे में सोच रहे होते हैं। इसके कारण आपमें उनके प्रति घृणा, क्रोध जैसे भाव जो अपराधियों के लिए आ सकते हैं, वो नहीं आते।

 

बाकी फिल्म देखिये तो स्वयं अनुमान लगाइए कि नए दौर से किसी पुराने दौर में जाती फिल्म में और क्या-क्या देखा जा सकता है क्योंकि हमने जो फिल्म की कहानी के बहाने पढ़ा डाला वो नर्सरी के स्तर का है और पीएचडी के लिए आपको खुद पढ़ना होगा, ये तो याद ही होगा!

(तस्वीर हफ्फिंगटन पोस्ट से साभार)