त्रिगुणमयी माया – “नया दौर”

शादी-ब्याह में बैंड वाले “ये देश है वीर जवानों का…” वाला गाना क्यों बजाने लगते हैं, ये मेरी समझ में वर्षों तक नहीं आया। संभवतः इसकी धुन वाद्ययंत्रों की जांच, संगत इत्यादि परखने के लिए अच्छी होती होगी। ये गाना “नया दौर” (Naya Daur) नाम की एक काफी पुरानी सी फिल्म का है, तो ये भी हो सकता है कि बैंड पार्टी के सभी सदस्यों ने इसे सुना, इसपर अभ्यास किया होगा। बी.आर. चोपड़ा की ये फिल्म, अपने लोकप्रिय गीतों के अलावा, दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला की जोड़ी के लिए भी याद की जाती है। शुरुआत में इसमें मधुबाला को नायिका के तौर पर लिया गया था लेकिन अपने पिताजी की बात मानते हुए फिल्म में कुछ दिन काम करके छोड़ दिया। इसकी वजह से बीआर चोपड़ा ने मुकदमा भी किया था जिसमें मुहम्मद युसूफ खान (उर्फ़ दिलीप कुमार) ने मधुबाला के पिता अताउल्ला खान के खिलाफ गवाही भी दी थी। अपनी जीवनी में दिलीप कुमार (मुहम्मद युसूफ खान) इस घटना के बारे में काफी असहज होकर बताते हैं।

इस फिल्म की कहानी ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित है, जहाँ विज्ञान की तरक्की और समय में आने वाले बदलावों की वजह से हो रही हलचल दिखा रहे होते हैं। कहानी का नायक शंकर एक तांगा चलाता है और उसका करीबी दोस्त कृष्णा एक लकड़हारा है। दोनों को स्टेशन पर रजनी दिख जाती है जो अपनी माँ और भाई के साथ आई है। दोनों ही को उससे एक नजर में प्यार हो जाता है। शहर से उसी गाँव में कुंदन भी आता है जो मशीनों और औद्योगिकीकरण के जरिये (नेहरु वाले समाजवाद जैसा) बदलाव लाना चाहता है। सबसे पहले वो बिजली से चलने वाली आरा मशीन लाता है जिससे लकड़ी के मिल में कई गांववालों की नौकरी चली जाती है। दूसरी तरफ शंकर और कृष्णा को जब पता चलता है कि दोनों को एक ही लड़की पसंद है तो कौन उस लड़की की तरफ हाथ बढ़ाए, इसका फैसला करने के लिए वो लाटरी जैसा नुस्खा सोचते हैं।

 

तय होता है कि रजनी अगर मंदिर में सफ़ेद फूल चढ़ाए तो शंकर उससे शादी करे और पीले चढ़ाए तो कृष्णा। शंकर की बहन मंजू को कृष्णा पसंद था। वो जाकर रजनी के पीले फूलों को सफ़ेद फूलों से बदल डालती है। कृष्णा ये देख लेता है और सोचता है कि शंकर ने अपनी बहन के जरिये उसके साथ छल किया है। दोनों में झगड़ा और मार पीट हो जाती है। रजनी को पहले से शंकर ही पसंद था ये भी पता चलता है। कुंदन के मिल के मशीनीकरण से तो नौकरियां गयी ही थीं, लेकिन वो यहाँ रुकता नहीं। वो बस ले आता है जिससे गाँव के तांगा चलाने वालों की रोजी-रोटी पर भी आफत आती। तांगेवाले उसे बस हटाने को कहते हैं, बहस होती है और शंकर शर्त लगा लेता है कि उसका तांगा अगर वो बस से पहले गाँव ले आया तो कुंदन उस रास्ते से बस हटा लेगा। गाँव वाले सर पीट लेते हैं, भला तांगा किसी बस से तेज कैसे चलता?

पहले गाँव पहुँचने के लिए शंकर एक नया रास्ता बनाने का फैसला करता है। ये रास्ता छह मील छोटा होता और उससे शंकर जल्दी पहुँच सकता था। जब गाँव वाले शंकर की ये नया रास्ता बनाने में मदद करने के लिए तैयार नहीं होते तो वो तीन महीने बाद होने वाली रेस के लिए अकेले ही रास्ता बनाने में जुट जाता है। शंकर से खार खाए बैठा कृष्णा तबतक कुंदन से हाथ मिला लेता है। अकेले शंकर की मदद के लिए पहले तो रजनी आती है, फिर दूसरे तांगा चलने वाले भी उसके साथ सड़क बनाने में आ जुटते हैं। शंकर जीत न सके इसलिए वो रास्ते में बने एक पुल को खराब कर डालता है। कृष्णा को ऐसा करते हुए शंकर की बहन मंजू देख लेती है। वो फूलों को बदलने और अपने कृष्णा के प्रति प्रेम की बातें स्वीकार लेती है। पछताता हुआ कृष्णा मंजू की मदद से फिर से पुल को ठीक करने में जुट जाता है।

 

रेस होती है, जैसा कि जाहिर है हिन्दी फिल्म थी तो नायक शंकर, बस से पहले तांगा लाकर वो जीतता है। शंकर के लिए रजनी तो कृष्णा के लिए मंजू होती है। जैसा कि आपको पता ही है, फिल्म की कहानी के बहाने से हमने आपको इस बार भी भगवद्गीता के कुछ श्लोक ही पढ़वा डाले हैं। इस फिल्म में आपको पहले नायक (शंकर) को नहीं सहनायक (कृष्णा) को देखना है। यहाँ आपको छठे अध्याय का पांचवाँ और छठा श्लोक दिखेगा –

 

उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।

आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।6.5

बन्धुरात्माऽऽत्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः।

अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्।।6.6

 

मनुष्य को अपने द्वारा अपना उद्धार करना चाहिये और अपना अध: पतन नहीं करना चाहिये; क्योंकि मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र भी है और शत्रु भी। जिसने स्वयं पर (इन्द्रिय, लोभ आदि पर) विजय पा ली वो स्वयं ही अपना मित्र होता है लेकिन अजितेन्द्रिय के लिए वो स्वयं ही अपना शत्रु है। कृष्णा के लिए मन में कैसा भाव जागता है? खलनायक के प्रति वितृष्णा या घृणा जैसा कोई भाव आता है? नहीं आता। ऐसा लगता है कि वो परिस्थितियों का शिकार है, जिसे खलनायक बहका रहा है। किसी तरह वो सुधरकर वापस नायक का मित्र हो जाए, दर्शकों का भाव यही रहता है। अपने पतन के लिए वो किसे जिम्मेदार कहे? अगर पहले उसने पता लगाया होता कि फूल किसने बदले हैं, तो ये सारी समस्या आती ही नहीं। रागिनी को पाने की कामना ने उसकी बुद्धि ही हर ली! क्रोध में अब वो रागिनी को पाने के लिए नहीं, शंकर को मिटाने के लिए प्रयास कर रहा है। इससे आपका ध्यान जाएगा कि लोभ-मोह जैसे कई दुर्गुणों को हटाने के बदले भगवान कृष्ण दूसरे अध्याय (62-63वें श्लोकों) में केवल क्रोध की बात क्यों कर रहे हैं।

 

प्रकृति मनुष्य को कैसे बांधकर उससे कर्म करवाती है, इसपर भी भगवद्गीता में काफी कुछ कहा गया है। कहानी की शुरुआत का कृष्णा सतोगुण के प्रभाव में होता है, फिर वो रजनी को पाने की कामना में रजोगुण के प्रभाव में आने लगता है, अंततः शंकर से शत्रुता में तमोगुण के प्रभाव में भी है। इसलिए कहा गया है –

 

दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।

मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।।7.14

 

यानि कि यह दैवी त्रिगुणमयी (सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण वाली) मेरी माया को पार करना अत्यंत कठिन है। जो मेरी शरण में आते हैं, वे इस माया को पार कर जाते हैं। कृष्णा से तमोगुण छूटता है (शंकर के प्रति क्रोध), तो रजोगुण (रजनी को पाने की कामना) भी तुरंत ही छूट जाती है। वो सतोगुण के प्रभाव में है? नहीं वो जब वापस पुल जोड़ने की कोशिश करता है तो उससे गलती न हो, केवल इतना ही प्रयास है। प्रायश्चित के भाव में तो वो उसके बाद पहुँचता है।

 

बाकी क्रोध और गुणों के बारे में नायक के बदले सहनायक के माध्यम से जो दिखाया है, वो केवल नर्सरी स्तर का है और पीएचडी के लिए आपको भगवद्गीता स्वयं पढ़नी होगी, ये तो याद ही होगा!