मेलेना को बच्चों के देखने की फिल्म तो नहीं कहा जा सकता। हाँ ये अवश्य है कि फिल्म के मुख्य किरदारों में से एक करीब-करीब बच्चा (किशोर वय का) है। उसे 10 जून 1940 को एक साइकिल मिलती है, उसी दिन इटली द्वित्तीय विश्व युद्ध में शामिल होता है और उसी दिन इस लड़के रेनाटो की नजर मेलेना नाम की एक सुन्दर सी विवाहित युवती पर पड़ती है। फिल्म की कहानी इन्हीं घटनाओं के साथ शुरू होती है और मेलेना नाम की ये आकर्षक युवती कैसे रेनाटो (और शहर के दूसरे निवासियों की भी) भावनाओं को उद्वेलित कर रही होती है, ये फिल्म शुरू होते ही दिखने लगता है। मेलेना का पति सेना में था और वो अपने बीमार पिता का ध्यान रख रही होती है। शहर के कई लोगों के लिए अकेली रहती ये सुन्दर युवती खुली तिजोरी जैसी थी, जिसे सब लूट लेना चाहते थे!
एक दिन मेलेना के पति के युद्ध में मारे जाने की खबर आती है। फिर और भी ऐसी घटनाएँ होती हैं जिससे मेलेना की बदनामी होती है और इसाई कानूनों के हिसाब से उसे मुकदमा झेलना पड़ता है। छूटने पर उसका ही वकील उसका बलात्कार करता है। इन सब के बीच रेनाटो का मोह मेलेना के प्रति बढ़ता जाता है। युद्ध बढ़ता-बढ़ता जब सिसली पहुँचता है तो बमबारी में मेलेना के पिता की भी मृत्यु हो जाती है। अकेले, बिना आर्थिक स्रोतों के, जर्मन कब्जे वाले इलाके में फंसी मेलेना के लिए जीवनयापन का एकमात्र उपाय वेश्यावृत्ति बचता है। उसकी इस स्थिति से शहर की महिलाऐं बड़ी प्रसन्न होती हैं क्योंकि अब उन्हें एक सुन्दर विधवा से कोई खतरा नहीं था, वो तो वेश्या हो गयी थी! जर्मन जाते हैं और शहर में अमेरिकी सैनिक आ जाते हैं। शहर की महिलाऐं अब मेलेना को पकड़कर उसके बाल काट देती हैं, उसके कपड़े फाड़ देती हैं और शहर से भगा देती हैं।
थोड़े समय बाद पता चलता है कि मेलेना का पति नीनो मरा नही था बल्कि जर्मन कैद में था। छूटकर वापस आने पर वो एक हाथ खो चुका होता है, लेकिन मेलेना को ढूँढने निकलता है। फिल्म के अंत में एक वर्ष बाद नीनो और मेलेना उसी शहर में दोबारा आ गए होते हैं। शहर की महिलाओं को अब वो खतरनाक नहीं लगती थी क्योंकि सुन्दर होने पर भी वो विवाहित थी। इसलिए उनके पति मेलेना के चक्कर में उन्हें छोड़ते, ऐसा खतरा नहीं था। जिन्होंने कभी उसे पीटा था वही अब मेलेना को “मैडम” बुलाती हैं और पूरी इज्जत से पेश आती थी। फिल्म के अंत में मेलेना केवल सुन्दर नहीं, बल्कि गरिमामय दिखती है। रेनाटो बहुत साल बाद बताता है कि जीवन में आई अधिकांश स्त्रियों को वो भूल गया, मगर मेलेना को कभी नहीं भूला।
फिल्म का अंत न चाहते हुए भी “न मान की चिंता, न अपमान का भय” याद दिला देता है। ये #भगवद्गीता के चौदहवें अध्याय का पच्चीसवाँ श्लोक है –
मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः।
सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः स उच्यते।।14.25
मोटे तौर पर यहाँ कहा गया है कि जो धीर मनुष्य सुख-दुःख में एक सा रहता है; जो मिट्टी के ढेले और सोने के लिए एक जैसा रहता है जो प्रिय-अप्रिय में तथा अपनी निन्दा-स्तुति में मान-अपमान में तथा मित्र-शत्रु के पक्ष-विपक्ष में समान भाव रखता है; जो सम्पूर्ण कर्मों के आरम्भ का त्यागी है, वह मनुष्य गुणातीत कहा जाता है। यहाँ “कर्मों के आरम्भ का त्याग” समझना थोड़ा सा कठिन हो सकता है। किसी भी काम को शुरू करने से पहले हमलोग आमतौर पर परिणाम के बारे में सोचते हैं। फल की इच्छा के साथ ही कार्य शुरू किया जाता है बल्कि प्रयोजन के बिना तो कोई मूर्ख ही काम करेगा ऐसा मान लिया जाता है। यहाँ आरम्भ का त्याग करने से आभिप्राय ये है कि ऐसा करेंगे तो वैसा होगा या ये परिणाम निकलेंगे वाला जो अंत के फल की कामना है, आरंभ के उस संकल्प का त्याग करने कहा जा रहा है।
करीब-करीब ऐसे ही अर्थ वाला भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय का पाँचवाँ श्लोक भी है –
निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञैर्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5
यहाँ कहा गया है कि जो मान और मोह से रहित हो गये हैं, जिन्होंने आसक्ति से होनेवाले दोषों को जीत लिया है, जो नित्य-निरन्तर परमात्मा में ही लगे हुए हैं, जो (अपनी दृष्टि से) सम्पूर्ण कामनाओं से रहित हो गये हैं, जो सुख-दुःखरूप द्वन्द्वों से मुक्त हो गये हैं, ऐसे (ऊँची स्थितिवाले) मोहरहित साधक भक्त उस अविनाशी परमपद (परमात्मा) को प्राप्त होते हैं।
फिल्म की नायिका मेलेना के लिए सीधे-सीधे ये तो नहीं कहा जा सकता कि वो नित्य-निरन्तर परमात्मा में ही लगी हुई थी लेकिन मान और मोह उसके लिए कोई कारण नहीं रह गए थे, आसक्ति से वो आगे निकल चुकी थी। लगभग ऐसी ही स्थिति में वो लड़का रेनाटो भी अंत के दृश्यों में दिखाई देने लगता है। इसलिए शुरूआती दृश्यों में मेलेना को जैसा किसी काम्य-आकर्षण जैसा दर्शाया जाता है, फिल्म के अंत की मेलेना वैसी नहीं दिखेगी। क्रान्तिकारी अभिनय, कमाल की वीडियोग्राफी या उम्दा निर्देशन जैसी चीजें फिल्म में शायद ही दिखेंगी, मगर कहानी में जो “न मान की चिंता न अपमान का भय” दिखा दिया गया है, उसके लिए कभी ये फिल्म देख सकते हैं। बाकी जो श्लोकों के बारे में बताया है, वो नर्सरी स्तर का है और पीएचडी के लिए आपको भगवद्गीता स्वयं पढ़नी होगी, ये तो याद ही होगा!