जब मनु भाकर भगवद्गीता की बात करती हैं!

“पढ़िए गीता; बनिए सीता; फिर इन सबमें लगा पलीता; किसी मूर्ख की हो परिणीता; निज घरबार बसाइए।“ ऐसा हम नहीं कहते, ऐसा तो रघुवीर सहाय का मानना था। ऐसी बचकानी सोच पर आश्चर्यचकित होना भी आवश्यक नहीं है। ये बिलकुल गाड़ी चलाना सीखने जैसा है। इसका अनुभव संभवतः आपने स्वयं भी कर रखा है। याद करके देखिये जब किसी फील्ड में गाड़ी चलाना केवल सीखा था, मैदान में गोल-गोल चक्कर लगाते गियर बदलना सीख लिया था तो क्या होता था? दोनों ओर से जहाँ गाड़ियाँ आ-जा रही हों, कुछ पैदल लोग भी सड़क पर हों, वैसी स्थिति में गाड़ी चलाने का कोई अनुभव न होने पर लोग अक्सर बिलकुल उल्टा ही कर बैठते हैं।

 

जैसे ही कोई कठिन परिस्थिति आई और ब्रेक दबाकर गाड़ी रोकने की जरुरत हुई, उल्टा एक्सेलरेटर ही दब जाता है। आपको पता था कि ब्रेक दबाने से गाड़ी धीमी होगी, रुकेगी लेकिन कोई प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस न होने के कारण आप कर नहीं पाते थे। शुरू में बहुत संभलकर, ध्यान देकर गाड़ी चलाने पर लोग इसे सीखते हैं। बाद में ध्यान जरा इधर उधर भी हो, तो अपनेआप एक्सेलरेटर से पैर हट जाता है, ब्रेक दब जाता है। बेचारे रघुवीर सहाय ने भी हिन्दी सीखी, उसमें कविता लिखना सीखा, लेकिन प्रायोगिक तौर पर भगवद्गीता लड़कियों को पढ़ाने से क्या परिणाम होंगे, इसका उन्हें कोई प्रायोगिक अनुभव तो था नहीं! बेचारे कॉमरेड रहे होंगे और आयातित विचारधारा के होने के कारण संभवतः स्वयं भी कभी भगवद्गीता नहीं पढ़ी होगी तो उन्होंने उल्टा अनुमान लगाया।

 

कैसे परिणाम आते हैं, इसका प्रायोगिक करके मनु भाकर ने दिखा दिया है। ये कैसे होता है, इसे समझना है तो भगवद्गीता के दूसरे अध्याय का इकतालीसवाँ श्लोक देखिये –

व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन।

बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्।।2.41

 

यहाँ भगवान श्री कृष्ण कह रहे होते हैं, कुरुनन्दन (अर्जुन), निश्चयात्मक (व्यवसायात्मिका) बुद्धि एक ही दिशा में कार्य करने वाली है, अज्ञानी पुरुषों की बुद्धियां, उनका संकल्प बहुत भेदों वाली और अनन्त दिशाओं में फैल रहा होता है। जैसे मनु भाकर केवल निशानेबाजी का अभ्यास नहीं कर रही होगी। उसे फिजिकल फिटनेस की भी जरुरत रही होगी, वो दौड़ती होगी, वजन उठाने का अभ्यास करती होगी, लेकिन ये सब करते समय उसने याद रखा कि उसे धाविका नहीं बनना, भारोत्तोलन की प्रतियोगिता नहीं जीतनी। उसका ध्यान केवल अपने खेल – निशानेबाजी की एक विधा पर रहा होगा। मनोरंजन के लिए टीवी देखती होगी, परिवार-मित्रों के साथ समय बिताती होगी, लेकिन उसने सारा समय उसी में नहीं खर्च कर दिया। अपने अभ्यास का समय प्रतिदिन निकालती रही होगी।

अपने कार्यक्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ होने की सोचने के बदले वो केवल कमाने, खाने और सो जाने तक अपनी सोच सीमित रख सकती थी। उसके ध्यान में ये भी रहा होगा –

 

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।

न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन।।6.16

 

इस श्लोक में श्री कृष्ण ने कहा है, अर्जुन, योग उस के लिए सम्भव नहीं होता, जो अधिक खाने वाला है। बिल्कुल न खाने वाला भी नहीं कर सकता है। जो अधिक सोने वाला है या हमेशा जागते ही रहने वाला है, योग उसके लिए भी फलित नहीं होता। खेलों में अच्छा प्रदर्शन करना है तो समय पर सोना, समय पर जागना होगा। देर रात तक जागना और सुबह देर तक सोने से तो काम चलेगा नहीं। भोजन का भी वैसा ही रहा होगा, नपा-तुला भोजन ही करना होगा। खाने-सोने से आगे ये अन्य चीजों पर भी काम करता है। जैसे बहुत ज्यादा मौज-मस्ती या बिलकुल ही नहीं, दोनों से परहेज रखना होगा। करीब-करीब सारी बातों में मध्यम मार्ग अपनाया गया होगा।

 

निरंतर अभ्यास से कोई पाप या पुण्य मिल रहा होगा, ऐसी अपेक्षा भी मनु भाकर ने नही की होगी। भारत में जहाँ “पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-धूपोगे होगे खराब” जैसी कहावतें सुनाई जाती हैं, वहाँ खेल के अभ्यास से कोई यश मिलेगा, ऐसी अपेक्षा मनु भाकर ने की होगी इसपर भी शंका होती है। ये दूसरे अध्याय के पचासवें श्लोक पर ले आता है जहाँ कहा गया है “योगः कर्मसु कौशलम्” –

 

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।

तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।।2.50

 

यानि कि बुद्धि (समता) से युक्त मनुष्य अपने जीवन में पुण्य और पाप दोनों का त्याग कर देता है। अतः तुम योग (समता) पाने का प्रयास करो, क्योंकि योग कर्मों में कुशलता है। कर्मों में कुशलता उसे अपनेआप उस स्थिति में पहुंचा देती है जहाँ यश-धन आदि पीछे-पीछे चले आते हैं। कुल मिलाकर मनु भाकर ने युवाओं को प्रायोगिक, करके दिखा दिया है कि अनुभवहीन, धूप में बाल पकाए बैठे तथाकथित प्रगतिशील बुड्ढ़े यानी शुगर फ्री पीढ़ी वाले जो कहते रहे हैं, भगवद्गीता उससे बिलकुल अलग ही कुछ सिखा देने वाला ग्रन्थ है।

 

बाकी मनु भाकर की विजय में जो दिखता है, उसे सुनना-पढ़ना आपको नर्सरी स्तर पर पहुँचा सकता है। पीएचडी के लिए आपको भगवद्गीता स्वयं पढ़नी होगी, ये तो याद ही होगा?

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