मेल गिब्सन की “ब्रेवहार्ट” बॉलीवुड की “छावा” और भगवद्गीता

संभाजी पर हाल में बॉलीवुड में बनी एक फिल्म से विदेशों में देशभक्तों पर बनी फिल्मों की याद आई। मेरे हिसाब से हिन्दुओं को जबरन कुर्सी से बाँधकर विदेशी फिल्में दिखाई जानी चाहिए ताकि उनका दिमाग खुल सके। मेल गिब्सन एक्शन फिल्मों के एक जाने-माने नायक हैं जिन्होंने अलग-अलग देशों के देशभक्तों की कहानियों पर आधारित कुछ फिल्मों में भी काम किया है। अक्सर ऐसे देशभक्तों को अपने देश के लिए युद्ध लड़ने पड़े हैं, तो फिल्में अपने-आप एक्शन फिल्म हो जाती है। ऐसी ही एक फिल्म “ब्रेवहार्ट” जो कि स्कॉट नायक विलियम वाल्लेस पर बनी थी, 1995 में आई थी। इस फिल्म का पर्यटन पर असर ये हुआ कि जिस जगह (स्टर्लिंग में) विलियम वाल्लेस ने एक युद्ध जीता था, वहाँ होने वाले “ब्रेवहार्ट कांफ्रेंस” में भाग लेने वालों की संख्या 60 हजार से सीधे बढ़कर एक लाख साठ हजार पर पहुँचने लगी।

 

स्कॉटलैंड पर इंग्लैंड ने कब्ज़ा कर लिया था और जो मकड़ी को बार-बार गिरने पर भी चढ़ने की कोशिश करते देखकर एक राजा के प्रेरित होने और फिर से युद्ध करके अपना राज्य वापस जीत लेने की कहानी सुनते हैं, वो स्कॉटलैंड के ही राजा रोबर्ट द ब्रूस की होती है। फिल्म की कहानी 1280 के दौर में शुरू होती है जब स्कॉट राजा के निःसंतान मरने पर इंग्लैंड का राजा लॉन्गशेंक्स आकर स्कॉटलैंड पर कब्ज़ा कर लेता है। कई स्कॉट मंत्री-जागीरदारों को मरवा दिया जाता है और अंग्रेजों से लड़ने में विलियम वाल्लेस के पिता और भाई भी मारे जाते हैं। विलियम को अपने चाचा के पास रहने जाना पड़ता है। इसके बाद अंग्रेज स्कॉटलैंड में “जस प्राइमे नोक्टिस” का कानून लागु करते हैं, जिसे अक्सर “प्राइमा नोक्टा” भी कहा जाता है। इस कानून का मतलब है जागीरदार अपने इलाके की किसी भी युवती से यौन सम्बन्ध बना सकता है। अधिकांश ऐसा ठीक सुहागरात पर अंग्रेज जागीरदार करते थे। तो फर्जी किस्से-कहानियों में जो भारत में जमींदारों के ऐसा करने की बातें सुनते हैं, वो कहाँ से आया, कौन करता था, ये अब आप समझ सकते हैं।

 

इस वक्त तक विलियम घर लौटता है, अपनी बचपन की मित्र से शादी करता है लेकिन उसकी पत्नी की कुछ अंग्रेज सिपाही हत्या कर देते हैं और बदला लेने के क्रम में विलियम और उसके साथी विद्रोह शुरू कर देते हैं। राजा लॉन्गशेंक्स उस वक्त फ़्रांस में अपने अभियानों में व्यस्त था इसलिए अपने बेटे को विद्रोह को कुचलने भेजता है मगर स्टर्लिंग की लड़ाई में जीत विलियम और उसके साथियों की होती है। यहीं विलियम वाल्लेस की मुलाकात रोबर्ट द ब्रूस से भी होती है। लौटने पर राजा लॉन्गशेंक्स ध्यान भटकाने के लिए इस्साबेल को विलियम से बात करने भेजकर फौज के साथ आगे बढ़ता है। इस्साबेल उल्टा विलियम को योजना बता देती है। इसके बाद भी फालकिर्क की लड़ाई में रिश्वत लेकर विलियम के साथी उसका साथ छोड़ जाते हैं और रोबर्ट द ब्रूस को भी वो विपक्ष से लड़ता देखता है। रोबर्ट को अपनी गलती समझ आती है और वो विलियम की बच निकलने में मदद करता है।

 

बच निकलने के बाद विलियम वाल्लेस धोखा देने वाले जमींदारों मोर्ने और लोचलेन को मार गिराता है। उसकी हत्या के लिए हत्यारे भेजे जाते हैं लेकिन वो भी नाकाम कर दिए जाते हैं। आखिरकार एडिनबर्ग में विलियम वाल्लेस को पकड़ लिया जाता है। विलियम वाल्लेस अपने अंतिम समय में मृत्यु के सामने होने पर भी सर झुकाने से वैसे ही मना कर देता है जैसे संभाजी ने किया था। जैसे कई अमानवीय यातनाओं के बाद भी कवि कलश और संभाजी नहीं झुकते, बिलकुल वैसे ही जीवित रहते आंतें निकाले जाने पर भी “ब्रेवहार्ट” विलियम वाल्लेस ने हार नहीं मानी थी। अंततः उसका सर वैसे ही काट लिया गया जैसे यातनाओं का कोई फायदा न होने पर संभाजी का काटा गया था। स्वराज का नारा लगाते जैसे संभाजी गए, वैसे ही “फ्रीडम” चिल्लाकर विलियम वाल्लेस गया था। उसकी मृत्यु के बाद रोबर्ट द ब्रूस बैन्नोकबर्न में अंग्रेजों का सामना करता दिखाई देता है। विलियम वाल्लेस को उसकी लम्बी तलवार के लिए जाना जाता था। वही तलवार युद्ध के मैदान में फेंकी जाती है और अंततः स्कॉट लोग अंग्रेजों को जीतकर अपनी स्वतंत्रता वापस लेते हैं।

 

स्वतंत्रता संग्राम कभी भी व्यक्ति या राजाओं की हार-जीत का मसला होते ही नहीं। कौन जीवित बचा, कौन वीरगति को प्राप्त हुआ, इससे धर्मयुद्ध में कोई अंतर नहीं पड़ता क्योंकि अंततः प्रश्न एक सभ्यता, एक संस्कृति के लिए जीवन और मरण का होता है। एक के बलिदान पर एक सभ्यता-संस्कृति बचती है तो सौदा कोई बुरा नहीं। संभाजी का बलिदान हिन्दुओं के लिए उतने ही महत्व का है जितना स्कॉट लोगों के लिए “ब्रेवहार्ट” विलियम वाल्लेस का अपना सर चढ़ा देना। इसी लिए #भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं –

 

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।

तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः।।2.37

 

भगवद्गीता के दूसरे अध्याय के इस सैंतीसवें श्लोक में भगवान कहते हैं कि युद्ध में मरकर तुम स्वर्ग प्राप्त करोगे या जीतकर पृथ्वी को भोगोगे;  इसलिय, हे कौन्तेय ! युद्ध का निश्चय कर तुम खड़े हो जाओ। युद्ध में हिंसा हो, मैं तो गाँधीवादी हूँ जी जैसी किसी चिंता से मुक्त करते हुए अगले ही श्लोक में भगवान कहते हैं कि जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुःख को समान मान के युद्ध में लग जाओ। इस प्रकार युद्ध करने से पाप भी नहीं लगेगा। संभाजी हों या “ब्रेवहार्ट” विलियम वाल्लेस, उनका चरित्र कई क्षुद्र-बुद्धि लोगों की समझ में ही नहीं आएगा। ऐसी स्थितियों के लिए भगवद्गीता के दूसरे अध्याय का ही उनतीसवाँ श्लोक देखिये –

 

आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेनमाश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः।

आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोतिश्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्।।2.29

 

अर्थात, कोई इसे आश्चर्य के समान देखता है;  कोई इसके विषय में आश्चर्य के समान कहता-बताता है; कोई अन्य मनुष्य इसके विषय में आश्चर्य की भांति सुनता है;  और फिर कोई सुनकर भी नहीं जान-समझ पाता। तो संभाजी या विलियम वाल्लेस का किरदार ऐसा कैसे था, ये जिन्हें नहीं समझ आ रहा, उनपर केवल तरस खाया जा सकता है, उनकी मदद की योग्यता हममें नहीं है।

 

बाकी फिल्म की कहानी के बहाने भगवद्गीता के श्लोकों के लौकिक अर्थ के बारे में जो बताया है, वो नर्सरी स्तर का है और पीएचडी के लिए आपको भगवद्गीता स्वयं पढ़नी होगी, ये तो याद ही होगा!