पहले तो टीजर, ट्रेलर, गाने इत्यादि आते हैं और हम पहले ही ये मानकर बैठे होते हैं कि किसी पुराने गाने को रीमिक्स के नाम पर बर्बाद किया होगा। इसलिए जब संगीत या गायक के स्तर में कमी नहीं दिखी तो “न तो कारवाँ की तलाश है…” वाले गाने के लिए हमने सोचा इसके वाक्यों को बर्बाद कर डाला होगा! उस समय तक पता था कि पोर्कीस्तान पर बनी फिल्म है और उसी समय “आँधी बनकर आया हूँ, मेरा हौसला भी ऐय्याश है…” सुनाई दिया। हमने सोचा हौसला ऐय्याश कैसे होगा? चुनांचे हमने मान लिया कि जरूर फिल्म का नायक हीरामंडी में बाप-दादा की जायदाद लुटा रहा होगा और बाप ने घर में बंद कर दिया होगा। उसके बाद भी दीवार कूद-फांद कर कोठे के नीचे पहुँच गया है, इसलिए गा रहा है – आँधी बनकर आया हूँ, मेरा हौसला भी ऐय्याश है… जो नायक दिखा था उसकी इमेज ही (मेरे जैसी) नंगे-लम्पट की थी!
बलंडर मिसटेक हो गया था! फिल्म में ये गाना जहाँ है, वहाँ नायक अपनी जमीन-जायदाद ही नहीं, अपना देश, अपना धर्म, अपना नाम, परिवार-नाते-रिश्ते सब चढ़ा कर उतरता दिखा। करने क्या जा रहा था? एक शरीर और जो थोड़ी सी ट्रेनिंग मिली होगी, उसे भी चढ़ा देने पहुँचा हुआ था! सब चढ़ा देने के लिए हौसला तो चाहिए और सब उड़ा देने पर तुले हुए को ऐय्याश न कहें तो फिर किसे ऐय्याश कहते हैं? फिल्म के गानों में या संगीत में कमी नहीं मिली। फिल्म की कहानी कोई नयी है? नहीं भाई, जो घटनाएँ दिखाई हैं, वो तो सभी जानी पहचानी थी। बस इतना किया है कि खुलकर उसे मंच से भीड़ के सामने सुना दिया है। ऐसा करते ही बहिष्कृत होने की कितनी संभावना है ये लेखक-निर्देशक को पता ही होगा, इसलिए उसका हौसला भी ऐय्याश ही है!
रहमान डकैत की दी हुई मौत बड़ी कसाईनुमा होती है – ये फिल्म का डायलॉग था, लेकिन असली कसाईनुमा मौत तो वो थी जो रहमान डकैत को मिली थी। सोचिये कोई आखरी साँसे गिनता अस्पताल की तरफ उसी की गोद में पड़ा जा रहा हो, जिसकी गद्दारी का उसे घंटे-दो घंटे पहले पता चला हो, जिसे मार देने की उसने पूरी कोशिश की और अभी-अभी नाकाम हुआ है। आखरी पलों में रहमान डकैत को ये भी समझ आ गया होगा कि उसका कातिल स्वयं को उसे बचाने वाला घोषित करके, उसके ही गिरोह में अपनी जगह कितनी पक्की कर लेगा। उसके छोटे भाई उजैर बलोच का नशेड़ी होना और हमजा का शातिर होना भी उसे दिख गया था। ना मियाँ, रहमान डकैत की दी मौत से कहीं ज्यादा कसाईनुमा मौत तो वो थी जो उसे मिली थी!
अपनी आदत के मुताबिक फिल्म में भगवद्गीता ढूँढने हम बैठते, जरूर बैठते, लेकिन फिल्म शुरू होने से पहले ही दूसरे अध्याय का सैंतीसवाँ श्लोक फुल स्क्रीन पर दाग दिया था –
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः।।2.37
यानी युद्ध में यदि तुम मृत्यु को प्राप्त हुए स्वर्ग की प्राप्ति होगी और अगर जीते तो पृथ्वी का राज्य मिलेगा। इसलिए कुन्तीनन्दन, युद्ध का निश्चय करके खड़े हो जाओ। कपिल सिब्बल के जीरो लॉस जैसा फार्मूला है या “दोनों तरफ लिखा हो भारत, सिक्का वही उछाला जाए” जैसा? सोशल मीडिया पर जो एक अखण्ड भारत का नक्शा दिखता है, उससे तुलना करते ही दिख जाता है कि “कुछ बात है जो हस्ती मिटती नहीं हमारी” वाला तो एक जुमला है। असल में तो थोड़े हिस्से हमारे नक्शे से 47 में काट दिए थे और कमसेकम 9 राज्यों में पिछले सत्तर-पचहत्तर वर्षों में अल्पसंख्यक हो गए हैं।
यानी खोने को कुछ नहीं है और पाने को सबकुछ है। जो अमन की आशा वाले #भगवद्गीता के पहले अध्याय के 38-39वें श्लोक वाला प्रश्न दोहराते रहते हैं, उसे हम सब कई बार सुन चुके हैं –
यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः।
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्।।1.38
कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम्।
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन।।1.39
इसमें अर्जुन यही तो पूछ रहे होते हैं कि वो गलत-सही या पाप-पुण्य नहीं समझ रहे लेकिन हम तो समझदार लोग हैं, क्या हमें हिंसा के पाप से बचना नहीं चाहिए? कई बार हमने यही तो सुना है – वो तो ऐसे ही हैं, लेकिन क्या हमें समझदारी नहीं दिखानी चाहिए जी? क्या हम भी उनके जैसे ही हो जाएँ जी? पूरे पहले अध्याय तक भगवान श्री कृष्ण ने कुछ कहा ही नहीं, सुनते रहे। उठो और युद्ध के लिए खड़े हो जाओ ये श्री भगवान् उवाच का हिस्सा होता है। अर्जुन आदि की बातों में समस्या क्या हो सकती है, वो ढूँढना है, और उस समस्या का निराकरण कैसे हो, ये भगवान बता रहे हैं, इतना सा समझने के लिए रॉकेट साइंटिस्ट जितना आईक्यू चाहिए क्या?
इतने पर ही बात समाप्त हो जाती तो क्या बात थी! फिल्म बनाने वालों ने फिल्म में चैप्टर बना डाले हैं। सुनने में आया है कि फिल्म दो भागों में है और #धुरंधर के पहले भाग में कुल नौ चैप्टर दिखाए हैं। भगवद्गीता में अट्ठारह अध्याय होते हैं, इसमें नौ तक गए हैं तो लगता है अट्ठारहवें अध्याय के तिरसठवें श्लोक का “यथेच्छसि तथा कुरु।” वाले हिस्से तक पहुँचाकर ही छोड़ेंगे। इस श्लोक में भगवान कहते हैं कि मैंने तो बता दिया, अब आगे जैसी तुम्हारी इच्छा हो, वैसा करो। यानी सबकुछ बता देने के बाद भी #फ्री_विल हमारे ही पास है। मानना है या नहीं ये 100% हमारी मर्जी, विश्वरूप ग्यारहवें अध्याय में दिखा चुके हैं –
श्री भगवानुवाच
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।11.32
सम्पूर्ण लोकों का क्षय करने के लिए बढ़ा काल मैं ही हूँ! तुम युद्ध नहीं करो तो भी इनमें से कोई नहीं बचनेवाला। इतने के बाद भी कोई “सर तन जुदा” की धमकी नहीं है। जो इच्छा हो वैसा करो (18.63) बस कर्म है तो कर्मफल होगा ही – परिणाम जो होंगे वो नियमबद्ध हैं, वो नहीं बदलेंगे।
बाकी सलीमा एक ही बार देखी है अभी तक तो नौ के नौ चैप्टर तो याद नहीं कर पाए, फिर हमारी बुद्धि का स्तर ही कितना है? इसलिए फिल्म के बहाने जो पढ़ा डाला, वो नर्सरी के स्तर का है और पीएचडी के लिए आपको भगवद्गीता स्वयं पढ़नी होगी, ये तो याद ही होगा!
#गीतायन #geetayan #धुरंधर #dhurandhar
