गीतायन अभ्यास पुस्तिकाएँ

क्या भगवद्गीता पूरी याद की जा सकती है? श्रुति परम्पराओं से आने वाले ग्रंथों के विषय में हम जानते हैं कि ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सुनकर ही पहुँचती थी। भारत में ऐसी किताबों को लिखने का काम काफी देर से शुरू हुआ। इसका एक बड़ा फायदा भी हुआ। जब नालंदा, तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय नष्ट कर दिए गए, और पुस्तकें जला दी गयीं, तो भी ज्ञान समाप्त नहीं हुआ। ऐसे कई लोग थे, जिन्हें पूरी-पूरी पुस्तकें याद थीं। अब सवाल था कि क्या जो याद रखा गया, वो पक्का-पक्का वही होगा जो पहले कहा गया था? एक दो पीढ़ियों में शब्द बदल तो नहीं जाते होंगे?

इसका जवाब है नहीं! ऐसा इसलिए नहीं होता क्योंकि “अनुष्टुप” जैसे छन्द अक्षर मात्राओं की एक तय गिनती पर ही बनते हैं। अगर एक भी अक्षर आगे पीछे करने का प्रयास किया जाए तो छंद बिगड़ जायेगा और गलती पहचान में आ जाएगी। अब सवाल है कि इन्हें याद किया कैसे गया होगा। अगर अपनी दिनचर्या से थोडा सा समय निकाल कर रोज एक दो श्लोक भी याद किये जाएँ तो पूरी भगवद्गीता याद करने में एक वर्ष भी नहीं लगेगा! सात सौ श्लोक उससे कम समय में याद हो जायेंगे। क्या ये अब भी किया जा सकता है? हाँ, अगर हम बचपन वाले तरीके इस्तेमाल करें तो मुश्किल नहीं।

जैसी श्रुतिलेख की पुस्तिकाओं से बचपन में अक्षर और शब्द सीखे थे, वैसी हल्के रंग में छपी पुस्तिकाओं पर अगर कलम या पेंसिल से बार बार श्लोकों को लिखें तो? पांच बार में संभावना है कि श्लोक याद हो जायेगा। इसके लिए कोई कॉपी-पुस्तिका बनी बनायी नहीं आती। लोगों की सुविधा के लिए हमने ऐसी पुस्तिकाएँ बनानी शुरू कर दी। बारहवाँ अध्याय (भक्तियोग) सबसे छोटा होता है। हमने उसी के बीस श्लोकों से शुरुआत की।  इसे डाउनलोड करके प्रिंट ले लें और उसपर लिखने का अभ्यास करें तो श्लोक याद किये जा सकते हैं।

हमारा प्रयास है कि इसके अक्षरों के आकार, फॉण्ट इत्यादि में सुधार लगातार जारी रखा जाए। अगर आप इस दिशा में कोई भी सुझाव दे सकेंगे, तो बड़ी कृपा होगी!

धन्यवाद

बारहवां अध्याय (भक्तियोग)

सातवां अध्याय (ज्ञानविज्ञानयोग)