माया, प्रेम और नोट्टिंग हिल

एक नामी-गिरामी फ़िल्मी हस्ती होने का मतलब क्या होता होगा? और जो कहीं आप बिलकुल मामूली से ऐसे आदमी हैं जो सफ़र से सम्बंधित किताबों की दुकान चलाता है (किताबें पहले ही कम बिकती हैं), उसकी पत्नी उसे छोड़कर जा चुकी हो, और अपने एक अजीब से रूम मेट के साथ एक मकान साझा करता हो, तब जिन्दगी कैसी होगी? जाहिर है एक जहाँ कामयाबी की बुलंदियों पर है, वहीँ दूसरा गरीबी के पायदान पर कहीं नीचे बैठा व्यक्ति है । दोनों में कुछ ख़ास समान होगा ऐसा सोच पाना भी मुश्किल है लेकिन ऐसे ही दो लोगों की कहानी है “नोट्टिंग हिल” । जब 1999 में ये फिल्म आई थी, तबसे लेकर अबतक इसे रोमांटिक कॉमेडी की विधा की अच्छी फिल्मों में गिना जाता है। कई लोग तो सिर्फ नायिका जूलिया रोबर्ट्स और नायक ग्रांट को देखने के लिए ये फिल्म देख डालते हैं।

 

फिल्म की कहानी में नायक विलियम की दुकान में एक दिन अचानक जानी मानी अभिनेत्री एन्ना आ पहुँचती है और वो उससे टकरा जाता है। उसके कपड़ों पर गिरे जूस को साफ़ करने के लिए वो उसे अपने मकान में आमंत्रित करता है और वहीँ से दोनों एक दूसरे को पसंद भी करने लगते हैं। एन्ना उसे रिट्ज होटल में एक बड़ी पार्टी में आमंत्रित भी करती है जहाँ विलियम को प्रेस रिपोर्टर समझ लिया जाता है। अभिनेत्री एन्ना आम तरीके से जीवन जीना चाहती थी जहाँ कैमरे उसका पीछा न कर रहे हों। इसके लिए वो विलियम की बहन की जन्मदिन की दावत में विलियम के साथ जाकर शामिल होती है। वापसी में वो अपने कमरे में विलियम को आमंत्रित करती है। किस्मत से एन्ना का फ़िल्मी दुनिया का बॉयफ्रेंड अचानक वहाँ पहुँच गया होता है और वो विलियम को बैरा समझ लेता है।

 

निराश विलियम लौट आता है लेकिन एन्ना को भूल नहीं पाता। कई महीने बाद एक दिन एन्ना फिर से अचानक उसके घर आ जाती है। उसे पीछा कर रहे पत्रकारों से छुपना था। इस बार भी दोनों की रात तो अच्छी बीतती है और दोनों को लगता है कि उन्हें एक दूसरे से प्यार हो गया है। अगली ही सुबह विलियम के साथ रहने वाले स्पाइक की बेवकूफी की वजह से पत्रकारों को एन्ना का पता चल जाता है और सुबह-सुबह एन्ना का सामना दर्जनों कैमरों से होता है, वो भी विलियम के साथ! नाराज एन्ना वहाँ से चली जाती है। इसके बाद भी दोनों एक दुसरे से मिलने की कोशिशें करते हैं और बार बार कोई न कोई अड़ंगा लगता रहता है। फिल्म का अंत आते आते जाहिर है कि नायक-नायिका दोनों को समझ में आ जाता है कि वो एक दूसरे से अलग नहीं रहने वाले, लेकिन ये होता कैसे है, ये देखने के लिए आपको पूरी फिल्म देखनी होगी।

 

हम फिल्म की कहानी को यहीं विराम देते हैं और जैसा कि अक्सर करते हैं, इस बार भी बता देते हैं कि हमने फिल्म की कहानी के धोखे में आपको फिर से भगवद्गीता पढ़ा दी है। इस फिल्म की कहानी में सबसे पहले तो आप सातवें अध्याय का चौदहवाँ श्लोक देखिये –

 

दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।

मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।।7.14

 

इस श्लोक में कहा गया है कि मेरी यह तीन गुणों वाली दैवी माया बड़ी कठिनाई से पार हो पाने वाली है, परन्तु जो मेरी शरण में आते हैं, वे इस माया को पार कर जाते हैं। माया के कठिनाई से पार होने को समझना मुश्किल नहीं। अनेक कहानियों और उदाहरणों में समझदार लोगों के भी माया में फँसने की बात सभी जानते हैं। यहाँ माया के तीन गुण सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण होने वाला भाग महत्वपूर्ण है। तमोगुण वालों का क्रोध, भय जैसे भावों के कारण माया के फेर में पड़ना तो समझ में आता है, लेकिन बाकी दोनों कैसे? इसके लिए फिल्म के दोनों मुख्य किरदारों को देखिये। नायक विलियम अधिकांश सतोगुण के प्रभाव वाला भला सा आदमी लगता है। इसके बाद भी वो कई बार नायिका या परिस्थितियों को गलत समझ लेता है। फिल्म की स्थितियों को बाहर से देख रहे दर्शकों को आसानी से उसका माया के पाश में आना नजर आ जायेगा।

 

उसकी तुलना में नायिका एन्ना महत्वाकांक्षी है। सफलता, प्रसिद्धि जैसी चीज़ों को पाने की इच्छा रजोगुण का प्रभाव मानी जाती है। वो भी अलग-अलग परिस्थितियों में नायक को गलत मान रही होती है, जबकि ऐसा कुछ होता नहीं। रजोगुण के प्रभाव वाला व्यक्ति भी माया के जाल में फंसता है, ये नायिका को देखकर समझा जा सकता है। यहाँ नायक-नायिका का एक दूसरे के प्रति भाव, या एक दूसरे के प्रति आकर्षण और व्यवहार भी देखिये। जिससे वो बचना चाह रहे हैं, उनका स्वभाव उन्हें (न चाहते हुए भी) बार-बार उसी में लगाता रहता है। ऐसी ही स्थितियों के लिए भगवद्गीता के तीसरे अध्याय में कहा गया है –

 

सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि।

प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति।।3.33

 

यानी ज्ञानवान् व्यक्ति भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करते हैं। सभी प्राणी अपनी प्रकृति पर ही जाते हैं, फिर इनमें (किसी का) निग्रह क्या करेगा। अगर कोई ऐसी स्थिति बार-बार आ रही है, जिससे आप बचने का प्रयास तो करते हैं लेकिन फिर से उसे आरंभ कर देते हैं तो एक बार पुनःविचार कीजिये। कहीं ये आपकी प्रकृति, आपका स्वभाव तो नहीं है? इसी बात को अट्ठारहवें अध्याय में दोहराया भी गया है –

 

न तदस्ति पृथिव्यां वा दिवि देवेषु वा पुनः।
सत्त्वं प्रकृतिजैर्मुक्तं यदेभिः स्यात्त्रिभिर्गुणैः।।18.40

 

इसके अर्थ में स्वामी तेजोमयानंद कहते हैं, पृथ्वी पर अथवा स्वर्ग के देवताओं में ऐसा कोई प्राणी (सत्त्वं अर्थात् विद्यमान वस्तु) नहीं है जो प्रकृति से उत्पन्न इन तीन गुणों से मुक्त (रहित) हो।

 

यदहङ्कारमाश्रित्य न योत्स्य इति मन्यसे।

मिथ्यैष व्यवसायस्ते प्रकृतिस्त्वां नियोक्ष्यति।।18.59

 

इस श्लोक में कहा गया है कि और अहंकारवश तुम जो यह सोच रहे हो, “मैं युद्ध नहीं करूंगा”, यह तुम्हारा निश्चय मिथ्या है, (क्योंकि) प्रकृति (तुम्हारा स्वभाव) ही तुम्हें (बलात् कर्म में) प्रवृत्त करेगी।

 

विलियम के कमरे में जाने पर फ़िल्मी हस्ती से उसकी मुलाकात का दृश्य देखिये। वो आसानी से ये कह सकता था कि वो कोई बैरा नहीं है। उसे कचरा उठाने की जरुरत नहीं थी, टिप लेना जरूरी नहीं था। उसका सतोगुण के प्रभाव वाला स्वभाव उसे बोलने ही नहीं देता। नायिका की प्रतिष्ठा बचाए रखने के लिए वो कूड़े की बाल्टी उठाकर चल देता है। फिल्म के दोनों किरदारों में अगर आपको ये बलपूर्वक कर्म करवा लेना नजर नहीं आये तो आप विलियम के साथ रहने वाले थोड़े कम बुद्धिमान से जीव स्पाइक को देख लीजिये। वो नित नयी मूर्खताएं करने पर ही तुला हुआ अपने स्वभाव के हिसाब से कर्म करता नजर आ जायेगा। नायिका को दिखाने के लिए स्पाइक का प्रेस से जुड़े लोगों को बुलाना कोई जरूरी नहीं होता। उसका स्वभाव उससे ऐसा करवा लेता है!

 

बाकी आपके स्वभाव का आपपर स्वयं क्या असर होता है, ये देखने के लिए आपको खुद मेहनत करनी होगी। भगवद्गीता बताती है कि इससे पार पाना कठिन है, लेकिन नामुमकिन बिलकुल भी नहीं है। ये जो हमने फिल्म के धोखे से बता दिया है, वो नर्सरी स्तर का था और पीएचडी के लिए आपको खुद भगवद्गीता पढ़नी पड़ेगी, ये तो याद ही होगा!