द रीडर

“द रीडर” मेरी प्रिय फ़िल्मों में से एक। एक ऐसी फ़िल्म जिसे देख कर मैं कई दिनो तक यहीं सोचती रही कि, “क्या ऐसा भी हो सकता है? क्या किसी को अपनी निरक्षरता की इतनी ग्लानि की मौत चुनना ज़्यादा उचित लगे उसे…”

किताबों के दिन इस फ़िल्म से अच्छा और क्या हो सकता है। तो चलिए मिलते हैं “हाना” से।

पैंतीस -छत्तीस साल की हाना एक ट्राम कोंडक्टर है। एक दिन अपने काम से लौटते समय उसे एक चौदह-पन्द्रह साल का लड़का “माइकल” उल्टी करते हुए मिलता है। उसे अपने घर लाती है। उसकी सफ़ाई करती है और उसे उसके घर को विदा करती है। कुछ दिनो बाद जब माइकल ठीक हो जाता है तो वह हाना को धन्यवाद कहने उसके घर आता है।

उम्र के इस पड़ाव पर अकेली हाना उसे अपनी ओर आकर्षित करती है। दोंनो के बीच सम्बंध बन जाता है और फिर यह सिलसिला रोज का बन जाता है। इसमें सेक्स के अलावा अच्छी बात यह होती है कि, “माइकल रोज हाना को कुछ पढ़ कर सुनता है।”

कई बार तो हाना कहती है कि पहले कुछ पढ़ कर सुनाओ फिर प्यार। इसी बीच हाना का प्रमोशन होता है क्लर्क के रूप मे और उसी शाम वो किसी को बिना कुछ बताए कहीं चली जाती है।

कुछ सालों बाद वकालत की पढ़ाई कर रहा माइकल, कोर्स के तहत एक स्पेशल केस के ट्रायल में जाता है। जहाँ उसे हाना मुजरिमों के बीच दिखती है। जुर्म है कि, “द्वितीय विश्व युद्द के समय वह नाज़ी कैम्प की गार्ड थी और उसने अपने साथियों के साथ मिलकर तीन सौ ज़िंदा महिलाओं को मौत के हवाले कर दिया।”

केस की मुख्य गवाह जो अब एक लेखक है, उसका कहना है कि हाना कैसे रोज किसी ना किसी को उसके लिए पढ़ने को बुलाती थी और किसे मरने के लिए भेजना है उसका चुनाव करती थी।

हाना का कहना है कि उस वक़्त वह अपनी ड्यूटी निभा रही थी पर उसने उन तीन सौ महिलाओं को आग के हवाले वाले काग़ज़ पर साइन नही किया। इस जाँच के लिए जज की तरफ़ से उसकी हैंडराइटिंग की माँग हुई। हाना ने हैंडराइटिंग दिए बिना अपना जुर्म क़बूल कर लिया। कोर्ट में मौजूद माइकल को अब समझ आया कि हाना “लिख-पढ़” नही सकती। अनपढ़ की शर्मिंदगी के आगे उसने उम्र क़ैद चुना।

हाना को उम्र क़ैद की सज़ा हो जाती है। माइकल उसके लिए किताबों का पाठ रिकॉड कर जेल में भेजता रहता है। उसके भेजे टेप और जेल की लाईब्रेरी की मदद से हाना पढ़ना-लिखना सीख जाती है। उसके अच्छे व्यवहार के करण उसे समय से पहले रिहा करने का आदेश मिलता है ।

पर रिहा होने के दिन ही वह फाँसी लगा कर मर जाती है।

अब वह मरती क्यों है, इसके लिए आप फ़िल्म देखे। इसके कई ओपेन छोर है। आप फ़िल्म देख कर ख़ुद अनुमान लगाए।

इस फ़िल्म में गीता सार ढूँढे तो ऐसा हुआ होगा कि कभी , “माइकल ने गीता पढ़ कर सुनाई होगी हाना को तभी नाज़ी कैम्प में लोगों को मृत्यु के लिए चुनते वक्त उसे भय नही हुआ होगा”

स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमरसी।

धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयो न्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते ।। ३१ ।।

भावार्थ:-क्षत्रिय होने के नाते अपने विशिष्ट धर्म का विचार करते हुए तुम्हें जानना चाहिए कि धर्म के लिए युद्ध करने से बढ़ कर तुम्हारे लिए अन्य कोई कार्य नहीं है। अतः तुम्हें संकोच करने की कोई आवश्यकता नही –

य एनं वेत्ति हन्तारं यश्र्चैनं मन्यते हतम् ।

उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ।। १९ ।।

जो इस जीवात्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसे मरा हुआ समझता है, वे दोनों ही अज्ञानी हैं, क्योंकि आत्मा न तो मरता है और न मारा जाता है।