अभी कुछ दिनों पहले साइकिल दिवस बीता। ऐसे में लोगों ने साइकिल से जुड़ी कई यादें ताज़ा की और इसी बीच मुझे याद आई एक प्यारी फ़िल्म “साइकिल”
इस फ़िल्म को मैंने कई लोगों को देखने को कहा। हुआ यूँ कि मेरे कुछ कोविड पॉजिटिव दोस्त आइसोलेशन की बोरियत से बचने के लिए मुझसे फ़िल्मों के नाम पूछते पर उस वक्त तो मेरा ध्यान उनकी स्वास्थ्य की चिंता में अटक जाता, फ़िल्मी का नाम कहाँ से सूझे जल्दी ? ऐसे में मैंने लगभग सभी पूछे जाने वाले दोस्तों को इस मराठी फिल्म के साथ मंडेला (तमिल फ़िल्म) का नाम सुझा दिया। कारण यह कि यह फिल्म सरल, सुंदर, और सकारात्मक है। सुंदर सिनेमेटोग्राफी से सजी यह फिल्म खुद की खोज भी है।
साइकिल फ़िल्म की कहानी केशव और दो चोरों की जीवन परिवर्तन की कहानी है। केशव वैद्य के साथ एक ज्योतिष भी है। एक ऐसा ज्योतिष और वैद्य जो जनता है कि उसके किसी यजमान या रोगी पर मुश्किल की घड़ी आने वाली है पर उसे वह सबल देता है और सब ठीक होने का विश्वास रखने को कहता है।
अपने पेशा के अलावा उसे अपने दादा की दी हुई पीली साइकिल बहुत प्रिय है। यह साइकिल उसके दादा को किसी अंग्रेज ने दी थी उनके अच्छे काम की तारीफ में।
अब हालात कुछ यूँ बनते है कि दो चोरों को वह साइकिल हाथ लगती है और वे उसे ले उड़ते हैं। अपनी प्रिय साइकिल के वियोग में केशव बेचैन हो उठता है और निकल पड़ता है उसकी खोज में…
अब साइकिल केशव को मिली या नही यह जानने के लिए आप फिल्म देखिए। सब हमी बता दे तो यह सुंदर फ़िल्म किस काम की।
हाँ तो अब इस फ़िल्म में गीता का ज्ञान ढूँढने के लिए एक बार फिर इसकी कहानी की तरफ जाते है।
फिल्म के शुरू में ही केशव से अपनी कुंडली दिखाने एक दूसरे गाँव का व्यक्ति आता है। उसकी कुंडली की ग्रह दशा ठीक नही होती। केशव उसकी आती परेशानी को देख चुपके से उसके झोले में कुछ रुपए रख देता है और कहता है, “अभी का समय कठिन है पर समय आने पर सब ठीक होगा।”
इधर एक दिन अपनी खोई साइकिल को गाँव-गाँव ढूँढता केशव उस व्यक्ति के घर के पास से गुजरता है और देखता है कि उस व्यक्ति का घर ढह चुका है फिर भी वह दुखी नही। वह व्यक्ति केशव को देख प्रणामा पाती करता है और कहता है , “ आपने कहा था ना कि मुझे अपनी प्रिय चीजों को खोना पड़ सकता है पर भरोसा रखो सब ठीक होगा।” साथ ही एक बहुत अच्छी बात कही थी केशव भाऊ कि , “चीजों से कोई लगाव मत रखो तो मैंने लगाव छोड़ दिया और अब मैं खुश हूँ। मेरा घर टूट गया। पहले तो मुझे कुछ समझ नही आया की क्या करूँ ? परिवार बेघर हो गया पर अब देखता हूँ तो लगता है अब अंदर -बाहर का भेद मिट गया। अब कोई खिड़की, दिवार या चौखट नही…
अब यहाँ मुझे जो गीता का ज्ञान समझ आता है वह यह है –
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च।।2.52।।
भावार्थ :- जिस समय तेरी बुद्धि मोहरूपी दलदल को तर जाएगी, उसी समय तू सुने हुए और सुनने में आने वाले भोगों से वैराग्य को प्राप्त हो जाएगा।
इसी के साथ फिल्म में एक और दृश्य है जब ज्ञानी केशव अपनी प्यारी साइकिल के खोज में भटकता हुआ अपने एक पुराने गुरु से मिलता है और एक बालक के समान बेचैन हो पूछ बैठता है , “ गुरु जी मेरी साइकिल मिल जाएगी ना ? आप देख कर बताएँ।”
उसके गुरु हँसते हुए कहते हैं , “केशव तुम कितनी बार सच -सच पत्रिका का लिखा लोगों को बताते हो, मुझे यह बताओ ? नसीब बदलना इतना आसान नही केशव पर हमें प्रयत्न ज़रूर करते रहना चाहिए। तुम्हारे सवाल का जवाब है कि, तुम प्रयत्न करो आगे भगवान तुम्हारी मदद करेंगे।”
केशव के गुरु की इस बात से मुझे गीता का कर्म ज्ञान याद आता है –
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
भावार्थ :- कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों में कभी नहीं… इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो और न ही काम करने में तुम्हारी आसक्ति हो।
नोट:- गीता का ज्ञान मुझे ज्यादा नही, विशेष ज्ञान के लिए आप खुद पढ़े 🙂 और जैसा कि फ़िल्म कि पोस्टर पर लिखा है “एक चक्कर भाबड्या जगात” यह फ़िल्म सच में आज के समय में एक मासूम जगत की सैर है…