2016 में एक फिल्म आई थी ‘पिंक’, वही जिसकी वजह से तापसी पन्नू को एक पहचान मिली। पर फिल्म में तापसी या अमिताभ बच्चन का होना उसकी प्रसिद्धि का कारण नहीं था। फिल्म अपनी पठकथा और कहानी में उठाए विशेष मुद्दे के कारण अधिक चर्चा मे रही। समीक्षकों का मानना था कि यह फिल्म अंग्रेजी फिल्म ‘द एक्यूज्ड’ से प्रभावित थी। 1988 में आई फिल्म ‘द एक्यूज्ड’ को यदि भारतीय दर्शक देखेगा तो आज भी कहानी की नायिका सारह को ही दोषी माने क्योंकि वो बियर-बार में एक पुरुष के साथ फ़्लर्ट करती दिखती हैं और बहुत से भारतीय आज भी मानते हैं कि फ़्लर्ट करने व कम कपड़े पहनने वाली लड़कियों के साथ बलात्कार जायज़ है। वहीं पिंक फिल्म की नायिका थोड़ी बहुत सहानुभूति बटोर पाती है क्योंकि वो बेशक देर रात शराब पी रही थी पर उसके कपड़े अश्लील नही थे। पर इसपर भी एक पक्ष लड़कियों को ही उनके साथ हुए हादसे का दोषी मानता है क्योंकि शराब पी कर अनजान लड़कों के साथ एक रिसोर्ट में जाना उनकी गलती थी। फिर भी फिल्म लोगों में लड़कियों की “No, means no” का मतलब समझाने में कामयाब हुई थी। मतलब 1988 में जो बात अमेरिका में कही गई वही आज के भारत में भी कही गई कि लड़कियों के चरित्र को उनके कपड़ों, उनकी आदतों या समय सीमा से मत बांधो।
वहीं मैं सोचती हूँ अगर लड़की का ‘न’ को इनकार माना जाना चाहिए तो क्या पुरुषों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं होता। या ये सच है कि पुरुष भोग के लिए किसी भी स्त्री का प्रयोग कर सकता है। इस बात को 2004 में अक्षय कुमार, प्रियंका चोपड़ा और करीना कपूर स्टारर फिल्म ‘ऐतराज़’ में बखूबी दिखाया गया था। फिल्म के नायक राज की जिंदगी में जब उसकी पूर्व प्रेमिका सोनिया आती है तो उसे अपनी सेक्सुअल डिजायर के लिए इस्तेमाल करना चाहती है। जहाँ सोनिया पैसों के लालच में एक अमीर वृद्ध व्यक्ति मिस्टर रॉय से विवाह कर शारीरिक सुख से वंचित होती है राज अपनी पत्नी प्रिया से बहुत प्रेम करता है। ऐसे में सोनिया की छल प्रपंच काम नहीं आता और राज उससे शारीरिक सबंध बनाने के लिए ऐतराज़ दर्ज करता है। जिसके परिणाम स्वरुप सोनिया राज पर यौन शोषण का मुकदमा दायर कर देती है। अपनी पत्नी की मदद से राज सोनिया को गलत साबित करने में कामयाब होता है।
दोनों ही फिल्मों में आदलती दृश्य बहुत प्रभावशाली हैं। जहाँ ऐतराज़ में अंत में प्रिया द्वारा चिल्ला-चिल्ला का राज पक्ष रखा गया वहीं पिंक में अमिताभ बहुत ही ज्यादा धीमें स्वर में अपना पक्ष रखते हैं। परंतु आज भी हम इस ‘NO’ वाले कांसेप्ट को लेकर दोहरा मापदंड रखते हैं अपनी सुविधा के अनुसार इसका उपयोग करते हैं। जहाँ ये माना जाता है कि पुरुष की शारीरिक रचना ऐसी है कि वो उत्तेजना की चरम भावना पर आकर खुदको नियंत्रित नहीं कर सकता और ऐसे में उसे इनकार स्वीकार नही होता इसलिए उसके रेप जैसे गुनाह को भी गलती मान लिया जाता है वहीं स्त्री की उत्तेजना या भोग की इच्छा को खारिज कर उसे कुलक्षणी साबित किया जाता है। उसे न तो इनकार करने का अधिकार देता है समाज न इनकार पर रियेक्ट करने का। वहीं वामपंथ जो स्त्रियों के पक्ष में है वो रामायण पढ़ते समय उल्टा हो जाता है। उनको सीता माता का इनकार समझ नही आता और पराई स्त्री जबरदस्ती उठाकर ले जाने वाला रावण उन्हें अपना भाई लगने लगता है लगता है और शूर्पणखा को इनकार करने वाले राम दुष्ट लगने लगते हैं। अब रामायण पर आते हैं।
पंचवटी में शूर्पणखा राम से मिलने आयी। शूर्पणखा की कथा संवेदना को स्पर्श करने वाली है। वह ऋषि विश्वश्रवा और उनकी दूसरी पत्नी कैकशी की छोटी बेटी और रावण की छोटी बहन थी। विश्वश्रवा के पिता भी प्रसिद्ध ऋषि थे जिनका नाम था पुलस्त्य जिनकी गणना दस प्रजापतियों में होती थी। कैकशी दैत्य जाति की कन्या थी।
शूर्पणखा का मूल नाम मीनाक्षी था और उसका उल्लेख चन्द्रमुखी और दीक्षा के रूप में भी होता है। उसका विवाह दैत्य जाति के एक यशस्वी युवक से हुआ था जो रावण का अनन्य था । कालान्तर में रावण ने सत्तालोभ में अपने समकक्षों और प्रतिद्वंदियों का शमन करना प्रारम्भ किया और उसी क्रम में सूर्पनखा के पति की भी हत्या कर दी। सूर्पनखा तब से वन-क्षेत्र में भटकने को विवश, निराश्रित और निर्द्वंद हो गयी। रावण की शक्ति के समक्ष वह कुछ कर भी नहीं पायी पर क्षोभ, हताशा और दिशाहीनता ने उसे अस्थिर कर दिया। पंचवटी उसके भाई खर-दूषण का क्षेत्र था।
पंचवटी में शूर्पणखा ने राम को देखा। राम का स्वरुप किसी को सम्मोहित करने में सक्षम था और शूर्पणखा सहज ही उनके प्रति आसक्त हो उठी। उसने अनेक दिवस राम के क्रियाकलापों, उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का अनुशरण किया और आखिर उसने राम के समक्ष जाने का मन बनाया। यह उसके जीवन का बड़ा निर्णय था, राम विवाहित थे जिसे वह अनेक दिनों से देख भी रही थी पर उस काल में अनेक विवाह का होना सहज था, दशरथ की ही तीन रानियाँ थीं। दैत्य जाति की कन्यायें विवाह प्रस्ताव लेकर युवकों के पास सहजता से जाती थीं जैसी उनकी परम्परा थी। महाभारत में नागा राजकुमारी उलूपी ने तो अर्जुन पर मोहित हो कर उसका अपहरण ही कर लिया था। शूर्पणखा ने भी नारी-सहज प्रवृति से एकान्त में राम को स्वयं के बारे में बताया और राम के प्रति अपने आकर्षण को निवेदित किया।राम मर्यादा-पुरुषोत्तम थे, उन्होंने अत्यन्त सहजता से और तनिक हास्य की मुद्रा में अपने विवाहित जीवन एवँ अपने मनोभावों से शूर्पणखा को परिचित कराते हुए उसे समझाने का प्रयास किया। जब कोई युवती निवेदन करने तक का साहस जुटा ले तो इंकार से सहसा उसका स्वाभिमान आहत हो उठता है। शूर्पणखा आग्रही हो उठी और उसने स्वयं को हर प्रकार राम की सहचरी और वन-क्षेत्र में राम की सहयोगिनी सिद्ध करने का प्रयास किया। उसे समझा पाने में विफल रहने पर अंततः राम ने विवश हो कर उसे लक्ष्मण के पास भेजा का लक्ष्मण के पास जाने का कोई कारण न था, वह राम के जीवन में अपनी भावी भूमिका देख रही थी-
“तुम्ह सम पुरुष न मो सम नारी।
यह सँजोग बिधि रचा बिचारी॥”
पर राम के बार-बार इंकार करने और समझाने के कारण शूर्पणखा अपमानित और उद्वेलित भाव से लक्ष्मण के पास आयी। लक्ष्मण ने शूर्पणखा को कटु शब्दों में धिक्कार दिया –
“लछिमन कहा तोहि सो बरई। जो तृन तोरि लाज परिहरई॥”
जो लज्जा त्याग दे वही तुम्हारा वरण करेगा।
अब शूर्पणखा इस अपमान से उन्मत्त और क्रुद्ध हो उठी। उसने स्वरुप-विस्तार कर हिंस्र रूप धारण किया और आवेग में सर्वप्रथम सीता पर आक्रमण कर दिया। अभी तक उसके प्रत्येक कर्म राम को उद्वेलित नहीं कर रहे थे क्योंकि वह किसी नारी का सहज अधिकार था। उसके हिंसक हो उठने पर राम ने आत्म-रक्षण हेतु लक्ष्मण को उसके प्रतिकार का आदेश दिया। लक्ष्मण ने सहज ही उसे पराजित कर वहाँ से पलायन को विवश कर दिया। अपमान से आतुर शूर्पणखा पहले खर-दूषण के पास आयी और उनके अंत के बाद विवश हो अपने पति के हत्यारे रावण के पास भी जा पहुँची। सीता के हरण की योजना भी शूर्पणखा ने दी जिससे राम-लक्ष्मण से अपने अपमान का बदला ले सके। यही कथा बढ़ते-बढ़ते उनके पूरे वंश के विनाश का कारण बन गयी।
संशय, क्रोध और प्रतिशोध की अग्नि मनुष्य से ना जाने क्या-क्या करवाती है। इनकार करने का अधिकार हर स्त्री व पुरुष को है। एक सभ्य समाज की यही पहचान है कि पुरुष हो या स्त्री किसी भी के साथ संबंध स्थापित नहीं करता।इसलिए जहाँ इनकार हमारा अधिकार है तो इनकार को स्वीकार करने का धैर्य रखना भी होना चाहिए।
दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोध: पारुष्यमेव च ।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम् ।। (गीता १६।४)
श्री कृष्ण भी कहते हैं कि दम्भ, घमण्ड, अभिमान, क्रोध, कठोरता असुरी संपदा हैं और पतन का कारण बनते हैं। उम्मीद है रामायण आदि ग्रंथों में भी कैसे वही बातें दर्शाई गयीं हैं, जो भगवद्गीता में लिखी हैं, इसपर आपका ध्यान चला गया होगा। बाकि बाकी अष्टांग योग के यम-नियम वाले हिस्से में जिस स्वाध्याय का निर्देश दिया गया है, उसके लिए आपको कौन सा ग्रन्थ देखना है, वो आप स्वयं तय कीजिये क्योंकि फिल्म की कहानी के बहाने से भगवद्गीता के श्लोकों के बारे में हमने जो बताया, वो नर्सरी स्तर का है और पीएचडी के लिए आपको भगवद्गीता स्वयं पढ़नी होगी।
गीतायन में इस लेख को जगह देने के लिए आभार।
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बहुत ही सुंदर लेख।
आनंद सर , इस लेख को साझा करने के लिए धन्यवाद।